भाजपा ने 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 105 सीटें हासिल की थीं। शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं। दोनों ने साथ चुनाव लड़ा था और इतनी सीटें मिलने के बाद साफ था कि सरकार एनडीए की बनेगी।लेकिन मुख्यमंत्री के पद पर झगड़ा हुआ और शिवसेना ने ढाई-ढाई साल के सीएम की बात कही। इस पर बात नहीं बनी तो फिर उद्धव ठाकरे ने बड़ा खेल करते हुए महाविकास अघाड़ी बना डाला। इस गठबंधन में एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना था। लेकिन 2022 में एकनाथ शिंदे ने अचानक बगावत की और 40 विधायकों एवं एक दर्ज सांसदों को लेकर भाजपा संग चले गए।इस बगावत के दौरान चर्चा थी कि भाजपा एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम का पद दे सकती है। लेकिन हर कोई उस वक्त हैरान रह गया, जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया। भाजपा के अपने नेता और पहले 5 साल सीएम रहे देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया। अब ठीक एक साल बाद अजित पवार की सरकार में एंट्री हुई है, जो डिप्टी सीएम बने हैं। उन्हें लेकर एक बार 2019 में फडणवीस ने सीएम पद की शपथ भी ली थी, लेकिन अजित पवार पीछे हट गए थे।
उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व पर भाजपा कर पाएगी कब्जा? क्या प्लान
अब सवाल यह है कि 105 सीटों के बाद भी भाजपा ने एकनाथ शिंदे को सीएम और अजित पवार को डिप्टी सीएम क्यों बनाया और उसे इससे क्या हासिल होगा? दरअसल भाजपा ने एकनाथ शिंदे के जरिए एक तरफ शिवसेना और उद्धव ठाकरे की विरासत को एक हद तक हथियाने की कोशिश की है तो वहीं राज्य में हिंदुत्व की अकेली पैराकार पार्टी बन गई है। शिवसेना के एमवीए संग जाने से भाजपा उस पर लगातार हिंदुत्व से समझौते का आरोप लगा रही है। फिर एकनाथ शिंदे को लेकर यह हमला और तेज कर दिया। साफ है कि भाजपा ने महाराष्ट्र में हिंदुत्व के वोटबैंक को अकेले हथियाने की सफल कोशिश की है। इसके अलावा मराठा वोटबैंक भी उसे कुछ हद तक मिल सकता है।
अजित पवार की एंट्री से क्या करेगी भाजपा, NCP का क्या होगा
अब एनसीपी की बात करें तो भाजपा ने अजित पवार को महत्व देकर मराठवाड़ा क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई है। महाराष्ट्र में भाजपा शहरी क्षेत्रों की पार्टी रही है। ऐसे में मराठवाड़ा में एनसीपी के वोटबैंक में उसे सेंध लगाने का मौका मिलेगा। भाजपा के रणनीतिकारों को लगता है कि भले ही अजित पवार और एकनाथ शिंदे को फिलहाल डिप्टी सीएम और सीएम का पद मिला है, लेकिन लंबे दौर में इसका लाभ भाजपा ही हासिल करेगी। वह आने वाले समय में अपने दम पर बहुमत हासिल करने के लिए एनसीपी और शिवसेना के बड़े वोटबैंक में सेंध लगाना चाहती है।