जम्मू का इलाका आतंकी हमलों में अचानक वृद्धि से दहल उठा है। खासकर बीते 2 महीने की घटनाओं ने सुरक्षा विशेषज्ञों की भी चिंता बढ़ा दी है। एक्सपर्ट्स इसके लिए आगामी विधानसभा चुनाव और सैनिकों की संख्या में कमी सहित कई दूसरे कारकों को जिम्मेदार मानते हैं।
राजौरी और पुंछ जिले 2021 से ही आतंकवाद की चपेट में रहे हैं। मगर रियासी, कठुआ, उधमपुर और डोडा जिलों में हमलों में अचानक वृद्धि देखी गई है। ऐसे में जम्मू क्षेत्र आतंक का नया केंद्र बनता जा रहा है। जानकारों के अनुसार जम्मू में आतंकी हमलों में वृद्धि का कारण आर्टिकल 370 का हटना, आगामी विधानसभा चुनाव, अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ, सैनिकों की संख्या में कमी और स्थानीय समर्थन है।
आर्टिकल 370 का हटना
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद सुरक्षा बलों ने लगातार आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए हैं। इसके चलते कश्मीर में आतंक पर काफी हद तक शिकंजा कसा है। 15 जून, 2020 को गलवान संघर्ष हुआ। इसके बाद से भारत-चीन के बीच लंबे समय से गतिरोध बना हुआ है। इसे देखते हुए जम्मू से भी सैनिकों को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भेज दिया गया। इसके चलते जम्मू के पहाड़ी, ऊबड़-खाबड़ और विशाल क्षेत्र में सैनिकों की संख्या कम हो गई। पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों ने इसका फायदा उठाया और घुसपैठ की कोशिशें तेज कर दीं।
आगामी विधानसभा चुनाव
हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया। यह देखकर पाकिस्तान हैरान रह गया, जो केंद्र शासित प्रदेश में जल्द विधानसभा चुनाव होते नहीं देखना चाहता है। पाकिस्तान के आतंकी समूहों की ओर से बैक टू बैक आतंकी हमलों को अंजाम दिया जा रहा है। इसे आगामी विधानसभा चुनावों को बाधित करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
स्थानीय स्तर पर मिलता सपोर्ट
जम्मू में हाल के दिनों में आईबी और एलओसी से होकर घुसपैठ के मामले बढ़े हैं। साथ ही, स्थानीय समर्थन के चलते ट्रेंड आतंकवादियों को अपने टारगेट चुनने और उन पर हमला करने का पर्याप्त मौका मिल जाता है। इन सबके बीच, सेना का कहना है कि वो जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है। सेना ने कहा कि सीमा पार से घुसपैठ करके आए आतंकवादियों के सफाए के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ संयुक्त अभियान चलाया जा रहा है। विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाने के लिए कई उपाय किए गए हैं। इनमें जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के साथ संयुक्त प्रशिक्षण अहम है। साथ ही सेना, पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने की मजबूत व्यवस्था शामिल है।