आखिर क्यों अष्टमी और नवमी अलग अलग मनाई जाती है? जानें इसका कारण
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इस साल चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हुई है. नवरात्रि में दो खास दिन होते हैं, अष्टमी और नवमी. नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है.

चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी 29 मार्च और महानवमी 30 मार्च को मनाई जाएगी. बहुत कम लोग जानते होंगे कि नवरात्रि की अष्टमी और नवमी अलग क्यों मनाई जाती है. आइए जानते हैं वैशाली में मौजूद शिव मंदिर के पुजारी पंडित लवकुश से कि आधे लोग अष्टमी और आधे लोग नवमी क्यों मनाते हैं.

नवरात्रि देवियों का त्योहार है. पहली देवी का नाम है शैलपुत्री. अष्टमी गौरी देवी का है. नवरात्रि के नौंवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है. अलग दिन और तिथि होने के कारण किसी के अष्टमी पूजी जाती है और किसी के नवमी पूजी जाती है. इसी प्रकार से नवदुर्गा में अलग अलग माता दुर्गा के रूपों का ध्यान लगाया जाता है.

नवरात्रि की अष्टमी और नवमी की पूजा दोनों दिन चलती है. इस पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते हैं. मान्यता है कि इस समय में देवी दुर्गा ने प्रकट होकर असुर चंड और मुंड का वध कर दिया था. संधि पूजा के समय देवी दुर्गा को पशु बलि चढ़ाई जाने की परंपरा तो अब बंद हो गई है और उसकी जगह भूरा कद्दू या लौकी को काटा जाता है. कई जगह पर केला, कद्दू और ककड़ी जैसे फल व सब्जी की बलि चढ़ाते हैं. इसके अलावा संधि काल के समय 108 दीपक भी जलाए जाते हैं.

क्यों मनाते हैं महाअष्टमी?

अधिकतर घरों में अष्टमी की पूजा होती है. अष्टमी पर मां दुर्गा के गौरी की पूजा होती है, जिन्होंने कड़ी तपस्या के बाद गौरवर्ण को प्राप्त किया और महागौरी के नाम से संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हुई. भगवती गौरी महानतम रूप है, इसलिए अष्टमी को महाअष्टमी कहा जाता है. महाअष्टमी के दिन 9 छोटी कन्याओं का पूजन करके भोजन करवाया जाता है और दक्षिणा भी दी जाती है. आखिरी में उन कन्याओं का आशीर्वाद लिया जाता है.

क्यों मनाते हैं महानवमी?

महानवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त पूरे श्रद्धा भाव से देवी दुर्गा के इस रूप की उपासना करता हैं, वह सारी सिद्धियों को प्राप्त करते हैं. हिंदू धर्म में मां सिद्धिदात्री को भय और रोग से मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा जिस व्यक्ति पर होती है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं.

मान्यता है कि एक महिषासुर नाम का राक्षस था, जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था. उसके भय से सभी देवता परेशान थे. उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया और 8 दिनों तक महिषासुर राक्षस से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया. जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा. महानवमी के दिन महास्नान और षोडशोपचार पूजा करने का रिवाज है. ये पूजा अष्टमी की शाम ढलने के बाद की जाती है. दुर्गा बलिदान की पूजा नवमी के दिन सुबह की जाती है. नवमी के दिन हवन करना जरूरी माना जाता है क्योंकि इस दिन नवरात्रि का समापन हो जाता है. मां की विदाई कर दी जाती है.

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