पाकिस्तान की कैबिनेट ने गुरुवार को गुपचुप तरीके से अमेरिका के साथ एक नए सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने को मंजूरी दे दी है. पाकिस्तान और अमेरिका के बीच होने वाला यह समझौता भारत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि अब पाकिस्तान, अमेरिका से सैन्य हार्डवेयर और घातक हथियारों को आसानी से खरीद सकता है.
पाकिस्तानी न्यूज पेपर द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की कैबिनेट ने पाकिस्तान और अमेरिका के बीच ‘कम्यूनिकेशन इंट्रोपरबिलिटी एंड सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर करने को मंजूरी दे दी है. दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते को सीआईएस-एमओए (CIS-MOA) नाम दिया गया है.
हालांकि, दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बारे में किसी भी पक्ष यानी ना ही पाकिस्तान और ना ही अमेरिका की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा की गई है.
अमेरिका-पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग में एक नई शुरुआत
सीआईएस-एमओए समझौता पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग में एक नई शुरुआत का संकेत है. इस समझौते के बाद पाकिस्तान, अब आसानी से अमेरिकी सैन्य हार्डवेयर आयात कर सकता है.
दोनों देशों के बीच सुरक्षा समझौते को पाकिस्तान की कैबिनेट ने ऐसे समय में मंजूरी दी है जब कुछ दिन पहले ही अमेरिकी सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के प्रमुख जनरल माइकल एरिक कुरिला और पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल सैयद असीम मुनीर ने मुलाकात की थी. मुलाकात के दौरान हुई बैठक में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और बेहतर करने पर सहमति बनी थी.
क्या है सीआईएस-एमओए (CIS-MOA) समझौता?
सीआईएस-एमओए (CIS-MOA) एक ऐसा फाउंडेशनल एग्रीमेंट है, जिसे अमेरिका अपने सहयोगी देशों के साथ हस्ताक्षर करता है. अमेरिका यह समझौता उसी देश के साथ करता है जिसके साथ वह करीबी सैन्य और रक्षा संबंध बनाए रखना चाहता है.
यह समझौता हस्ताक्षरकर्ता देश को सैन्य उपकरण और हार्डवेयर की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की ओर से कानूनी कवर भी प्रदान करता है. सीआईएस-एमओए पर हस्ताक्षर करने का मतलब है कि दोनों देश संस्थागत तंत्र को बनाए रखने के प्रति इच्छुक हैं.
पाकिस्तान को हथियार देगा अमेरिकापाकिस्तान और अमेरिका के बीच पहली बार अक्टूबर 2005 में 15 वर्षों के लिए सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. यह समझौता 2020 में समाप्त हो गया था. जिसे उस वक्त रिन्यू नहीं किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों ने अब इसे रिन्यू करने का फैसला किया है. जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, संचालन और प्रशिक्षण भी शामिल है.
पाकिस्तानी वेबसाइट में छपी रिपोर्ट में अमेरिकी सूत्र के हवाले से कहा गया है कि दोनों देश के बीच हुए CIS-MOA समझौता यह संकेत देता है कि अमेरिका आने वाले वर्षों में पाकिस्तान को कुछ सैन्य हार्डवेयर का निर्यात कर सकता है.
भारत पर क्या होगा असर?
अमेरिका और पाकिस्तान के बीच होने वाले इस समझौते पर एक रिटार्यड सीनियर आर्मी ऑफिसर का कहना है कि इस समझौते के बावजूद पाकिस्तान के लिए अमेरिका से सैन्य हार्डवेयर खरीदना आसान नहीं है. भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि लॉन्ग टर्म के लिए देखा जाए तो अमेरिका का हित पाकिस्तान के साथ नहीं है. हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पाकिस्तान, अमेरिका की जरूरत है. इसलिए यह समझौता दोनों देशों के उद्देश्य को पूरा करता है.एक समय था जब पाकिस्तान अमेरिकी सैन्य और सुरक्षा प्राप्त करने वाला प्रमुख देश था. लेकिन शीत युद्ध के बाद जैसे-जैसे चीन, अमेरिकी वर्चुस्व को चुनौती देने लगा, स्थितियां बदल गईं. अमेरिका ने चीन से मुकाबला करने के लिए भारत के साथ आना ज्यादा उचित समझा. इसी बीच धीरे-धीरे पाकिस्तान, अमेरिका के लिए महत्वहीन होता चला गया.
दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार
2020 में अमेरिका में बाइडेन की सरकार और पाकिस्तान में शहबाज शरीफ की सरकार बनने के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार होना शुरू हुआ. इससे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार पाकिस्तान पर आतंकवादियों को खात्मे के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया था. जिस वजह से दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंधों को रिन्यू नहीं किया जा सका था. डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया था कि सहायता के बदले अमेरिका को पाकिस्तान से हमेशा झूठ और धोखा ही मिला.हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अभी तक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक रूप से बात नहीं की है.