पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी करीब 19 साल बाद जेल से रिहा हो गया है। उसकी पत्नी मधुमणि की भी रिहाई हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ती उम्र और बीमारियों के कारण रिहाई का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुरुवार की रात कारागार प्रशासन ने दोनों की रिहाई का आदेश जारी किया था।
शुक्रवार को कुछ घंटों में ही सभी औपचारिकता पूरी कर दी गई। उनकी रिहाई का परवाना पहले जेल पर पहुंचा। यहां से जेलर अरुण कुमार खुद बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचे। इसके बाद दोनों को 25-25 लाख के मुचलके पर रिहा कर दिया गया।
2003 में मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में अमरमणि को 2007 में उम्रकैद की सजा हुई थी। कई बीमारियों के कारण पिछले कुछ सालों से अमरमणि और उसकी पत्नी को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। कहा जाता है कि ज्यादातर समय दोनों पति-पत्नी अस्पताल में ही रहे। रिहाई का आदेश अस्पताल में ही रिसीव कराया गया।
इस दौरान अमरमणि के बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने कहा कि फिलहाल अस्पताल के डॉक्टर तय करेंगे कि उन्हें घर ले जाया जा सकता है या किसी हायर सेंटर में रेफर किया जाएगा। अमनमणि ने कहा कि भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली है। डॉक्टर जो भी कहेंगे उसी के अनुसार फैसला किया जाएगा।
मधुमिता का परिवार रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
लखीमपुर शहर के मिश्राना की रहने वाली कवयित्री मधुमिता शुक्ला की साल 2003 में लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मधुमिता के परिवार ने उस समय मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी व उनकी पत्नी मधु समेत कई लोगों पर हत्या मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में अमरमणि व उनकी पत्नी मधु को उम्रकैद की सजा हुई थी।
गुरुवार की रात रिहाई का आदेश जारी होते ही मधुमिता का परिवार शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। मधुमिता केस की पैरोकार उनकी बहन निधि दिल्ली पहुंच गई और सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई। हालांकि कोर्ट ने रिहाई पर रोक से इनकार कर दिया।
मधुमिता के भाई विजय शुक्ला ने कहा कि उनका परिवार निराश और डरा हुआ है। हमें अब परिवार की सुरक्षा की चिंता सता रही है। ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी बहन निधि का पूरा संघर्ष बेकार चला गया। विजय ने कहा कि वकीलों से राय मशविरा कर आगे कदम बढ़ाएंगे।
कवयित्री मधुमिता शुक्ला से प्यार में बर्बाद हो गया राजनीतिक सफर
अमरमणि त्रिपाठी का राजनीतिक और सामाजिक जीवन कवियित्री मधुमिता शुक्ला के प्यार में बर्बाद हो गया। लखीमपुर की कवयित्री मधुमिता वीर रस की कविताएं पढ़ती थीं। अमरमणि के संपर्क में आईं तो उनका नाम बड़ा हो गया। मंच से मिली शोहरत और सत्ता से नजदीकी ने उन्हें पावरफुल बना दिया।
अमरमणि त्रिपाठी से उनका रिश्ता प्रेम में बदल गया। दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गए। मधुमिता प्रेग्नेंट हो गईं। उन पर गर्भपात करवाने का दबाव बढ़ा पर उन्होंने नहीं करवाया। इसी बीच, 9 मई 2003 को 7 महीने की गर्भवती मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
संतोष राय और पवन पांडे के साथ अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी और भतीजे रोहितमणि त्रिपाठी को आरोपी बनाया गया। प्रदेश में बसपा सरकार थी और अमरमणि त्रिपाठी मंत्री थे। CBCID ने 20 दिन की जांच के बाद मामला CBI को सौंपा। गवाहों से पूछताछ हुई तो दो गवाह पलट गए।
कई बार रिहाई की उम्मीद बंधी लेकिन फंस जाता था पेच
प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों को रिहा करने के लिए सरकार ने रिहाई का मापदंड निर्धारित किया है। इसके अंतर्गत जेल में निरुद्ध 60 वर्ष के ऊपर बुजुर्ग बंदियों और जिनकी सज़ा 10 वर्ष से ऊपर 14 वर्ष से कम की सज़ा पूरा हो चुका है, उन कैदियों की रिहाई की उम्मीद जगी। उसमें अमरमणि और मधुमणि का नाम भी प्रमुख रूप से शामिल था।
दोनों इस दायरे में आ रहे थे, पर अमरमणि का मामला इस वजह से फंस जाता था क्योंकि उन्हें उत्तराखंड की अदालत से सजा मिली थी। पूर्व मंत्री अमरमणि की रिहाई के लिए उनके बेटे अमनमणि ने भी खूब संघर्ष किया। रिहाई के लिए पिता के प्रति अच्छे चाल-चलन की रिपोर्ट लगवाने के लिए वह अक्सर अफसरों के यहां चक्कर लगाते रहे।