अपने ही गढ़ में चुनौती झेल रही भाजपा, इस कद्दावर नेता को वापस लाने की तैयारी; क्या मान जाएंगे फडणवीस?
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आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) महाराष्ट्र में अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार करने की पूरी कोशिश कर रही है। महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व में महागठबंधन (महायुति) की सरकार है।इस गठबंधन में भाजपा के अलावा, शिवसेना (शिंदे समूह) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) भी शामिल है। हालांकि इन सबके बावजूद भगवा पार्टी अपना आधार मजबूत करने में जुटी है। इसी कड़ी में भाजपा एक ऐसे नेता को फिर से शामिल करने जा रही है जिसने कभी उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी। हम बात कर रहे हैं एकनाथ खड़से की।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) गुट के वरिष्ठ नेता एकनाथ खड़से लोकसभा चुनाव से पहले अपनी मूल पार्टी बीजेपी में लौटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। भाजपा में उनकी वापसी ऐसे समय में हो रही है जब भगवा पार्टी उत्तरी महाराष्ट्र के अपने गढ़ में आंतरिक चुनौतियों से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है। संघ परिवार के साथ 40 वर्ष बिताने के बाद खड़से ने अक्टूबर 2020 में पार्टी छोड़ दी थी और तत्कालीन एकजुट एनसीपी में शामिल हो गए थे। वह वर्तमान में एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के एमएलसी हैं। एकनाथ खड़से ने जनसंघ से शुरुआत की थी और भाजपा के संस्थापक नेताओं में से एक थे।

.. तो राजी नहीं हैं फडणवीस

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जब उनसे पूछा गया कि क्या वह भाजपा में वापस जा रहे हैं, तो खड़से ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा, ”मैं सभी से सलाह-मशविरा करने के बाद उचित निर्णय लूंगा। कुछ पहलू हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।” ऐसा माना जा रहा है कि उनका इशारा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की ओर था। कहा जा रहा है कि फडणवीस सहित राज्य भाजपा नेतृत्व खड़से की वापसी के लिए तैयार नही हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने ही खड़से से संपर्क किया और वह चाहता है कि लोकसभा चुनाव से पहले बदलाव हो। क्योंकि पार्टी को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

खड़से ने भाजपा छोड़ते समय फडणवीस और कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन को दोषी ठहराया था और दोनों पर उत्तर महाराष्ट्र में उनके कद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अब ये लोग खड़से की वापसी के रास्ते में नहीं आएगा। उन्होंने कहा, “जब संगठन और चुनाव की बात आती है, तो सभी को पिछली शिकायतों को दूर करने और एक साथ काम करने के लिए कहा जाएगा।”

पुरानी है रंजिश

फडणवीस और खड़से के बीच कड़वाहट 2014 के विधानसभा चुनाव से चली आ रही है। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की जीत के बाद खड़से को बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक होने के नाते सीएम बनने की उम्मीद थी। हालांकि, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने फडणवीस को चुना। खड़से को राजस्व और कृषि जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए गए और उन्हें फडणवीस सरकार में नंबर 2 माना जाता था। हालांकि, कुछ वर्षों के भीतर, खड़से को पुणे में एक भूमि सौदे पर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। यह आरोप लगाया गया था कि राजस्व मंत्री के रूप में, खड़से ने पुणे के भोसरी में 3.1 एकड़ एमआईडीसी प्लॉट की डील को “मैनेज” किया था। आरोप है कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि इस प्लॉट को उनकी पत्नी और दामाद खरीदें। जिन्होंने इसे कम से कम 3.75 करोड़ रुपये में खरीदा था, जबकि दर 30.01 करोड़ रुपये चल रही थी।

खड़से के आने से क्या होगा फायदा

खड़से उत्तर महाराष्ट्र के एक बेहद सम्मानित नेता माने जाते हैं। वह लेवा पाटिल समुदाय से हैं जो ओबीसी में आता है। यह समुदाय मराठाओं को आरक्षण देने के अपने फैसले के बाद से भाजपा से नाराज बताया जा रहा है। अब भाजपा इसे शांत करने की कोशिश कर रही है। सूत्रों ने कहा कि भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि खड़से की वापसी से पार्टी को उत्तरी महाराष्ट्र में जलगांव (उनका गृह आधार) और रावेर जैसे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में असंतोष को कम करने में मदद मिलेगी, जिसमें छह लोकसभा सीटें और 36 विधानसभा क्षेत्र हैं। इस इलाके को भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जाता है।

बुधवार को बीजेपी के मौजूदा सांसद उन्मेश पाटिल जलगांव से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर शिवसेना (यूबीटी) में शामिल हो गए। बीजेपी ने यहां से अपनी पूर्व महिला प्रदेश अध्यक्ष और एमएलसी स्मिता वाघ को मैदान में उतारा है। इसके अलावा, भाजपा ने रावेर से दो बार की मौजूदा सांसद रक्षा खडसे को उतारा है जो एकनाथ खडसे की बहू हैं। हालांकि भाजपा के फैसले से भी कुछ दरारें पैदा हुई हैं। बीजेपी को उम्मीद है कि अगर खड़से आते हैं तो इन समस्याओं का समाधान हो सकता है।

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