हरियाणा की सियासत में यूपी के दल ठोक रहे ताल, कद बढ़ाने की चाहत में वोटकटवा न बन जाएं
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हरियाणा के विधानसभा चुनाव में इस बार उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रभाव रखने वाले कई दल किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं. समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल और आजाद समाज पार्टी तक पूरे दमखम के साथ विधानसभा चुनाव लड़ने की हुंकार भरी है.

बसपा और आसपा(आजाद समाज पार्टी) ने दलितों के सहारे अपना सियासी कद बढ़ाने के लिए मैदान में उतरी हैं तो सपा यादव-मुस्लिम केमिस्ट्री के जरिए अपना दम दिखाना चाहती है. इसी तरह से आरएलडी जाटों समुदाय के दम पर यूपी से बाहर अपना विस्तार करने का सपना संजोया है. ऐसे में देखना है कि यूपी के क्षेत्रीय दल हरियाणा में सियासी कद बढ़ाते हैं या फिर वोट कटवा पार्टी बनकर रह जाते हैं?

हरियाणा की सियासत में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यही पैटर्न दिखा था. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने के चलते हरियाणा के क्षेत्रीय दल भी किनारे लग गए हैं. इनेलो से लेकर जेजेपी तक सियासी हाशिए पर है. इसीलिए इन दोनों ही दलों ने दलित आधार वाले राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन कर रखा है. कांग्रेस बनाम बीजेपी की लड़ाई में यूपी के सियासी आधार वाली पार्टियां क्या करिश्मा दिखा पाएंगी.

यूपी में बसपा चार बार सत्ता में रही है, लेकिन हरियाणा की सियासत में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी है. इस बार बसपा प्रमुख मायावती ने हरियाणा में इनेलो (INLD) के साथ गठबंधन किया है. इसी तरह आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना से लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद ने दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ मिलकर हरियाणा चुनाव में उतरे हैं. सपा की कोशिश कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने की है तो आरएलडी की सियासी मंशा बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है.

बसपा का क्या खाता खुलेगा?

हरियाणा में बसपा और इनेलो ने जाट-दलित समीकरण बनाने के लिए हाथ मिलाया है. इसके लिए सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी बनाया है, जिसमें बसपा 34 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि बाकी सीट पर इनेलो अपने प्रत्याशी उतारेगी. बसपा 2019 के चुनाव में भले ही हरियाणा में खाता नहीं खोल पाई है, लेकिन उसे 4.21 फीसदी वोट मिला था. बसपा का सूबे में साढ़े चार से पांच फीसदी के करीब वोट शेयर 1989 से है. इनेलो को पिछले चुनाव में 2.44 फीसदी वोट मिला था, लेकिन उससे पहले 24 फीसदी वोट था. इनेलो ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 1.74 फीसदी वोट मिले तो बसपा को 1.28 फीसदी वोट मिला है.

बसपा की कमान युवा नेता आकाश आनंद के हाथ में है और पार्टी एक बार फिर 21 प्रतिशत अनुसूचित जाति के मतदाताओं के सहारे हरियाणा में पैर जमाना चाह रही है. बसपा 34 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें से खाता खोलने की चुनौती है. आकाश आनंद की साख भी दांव पर लगी है. 2024 के चुनाव में जाट और दलित वोटों का झुकाव जिस तरह से कांग्रेस की तरफ रहा है, उसके चलते बसपा के लिए हरियाणा में जगह बनाना आसान नहीं दिख रहा है. ऐसे में बसपा का वोट जिस तरह से राज्य में चुनाव दर चुनाव गिर रहा है, उसके चलते कहीं वोट कटवा पार्टी न बन जाए.

चंद्रशेखर क्या पैर जमा पाएंगे?

नगीना लोकसभा सीट से सांसद बने दलित नेता चंद्रशेखर आजाद अपनी आजाद समाज पार्टी का राष्ट्रीय विस्तार देने के लिए हरियाणा में जेजेपी के साथ गठबंधन किया है. इनेलो से टूटकर बनी जेजेपी 2019 में हरियाणा की सियासत में किंगमेकर बनकर उभरी थी, लेकिन पांच साल के उसे अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए जंग लड़ना पड़ रहा है. ऐसे में चंद्रशेखर ने जेजेपी के साथ हाथ मिलाया है.

हरियाणा की 90 सीटों में से जेजेपी 70 और आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. इस समझौते से आसपा से अधिक जेजेपी को मदद मिलने की आस है. चंद्रशेखर ने जिस तरह यूपी में अपनी सियासी पहचान दलितों के बीच बनाई है, उसी तरह हरियाणा में उनकी लोकप्रियता नहीं है. हरियाणा में दलित समुदाय के चेहरे के तौर पर कांग्रेस सांसद कुमारी शैलजा और उदयभान हैं. ऐसे में चंद्रशेखर जेजेपी के साथ मिलकर क्या खाता खोल पाएंगे ये कहना मुश्किल है.

सपा को क्या कांग्रेस सीट देगी?

समाजवादी पार्टी 2024 में उत्तर प्रदेश की 80 में से 37 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. ऐसे में अखिलेश यादव सपा को राष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए हरियाणा विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला किया है. सपा की कोशिश इंडिया गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ने की है. इस तरह सपा हरियाणा में कांग्रेस के सहारे अपनी जमीन तलाशना चाह रही है, लेकिन अभी तक दोनों दलों में बात नहीं बनी है. हरियाणा कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते हैं.

सपा ने यह भी तय कर रखा है कि कांग्रेस अगर उसे सीट नहीं देती है तो वह अकेले चुनावी किस्मत आजमाएगी. हरियाणा के 2019 विधानसभा चुनाव में सपा कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी. वह चार सीटों पर लड़ी थी और सभी में उसकी जमानत जब्त हुई थी. इसके बाद भी सपा चुनाव लड़ने के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए यादव और मुस्लिम प्रभाव वाली सीट पर चुनाव लड़ने की रणनीति है. सपा के रणनीति मान रहे हैं कि भले ही कोई सीट मिले या न मिले, लेकिन पार्टी को अपनी जगह बनाने में मदद मिलेगी. ऐसे में देखना है कि सपा इस बार क्या करिश्मा करती है?

इस बार के चुनाव में क्या आरएलडी का खुलेगा खाता?

आरएलडी केंद्र में एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी मोदी सरकार की कैबिनेट में हैं. हरियाणा में जाट वोटों की ताकत को देखते हुए आरएलडी ने विधानसभा चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह की ससुराल सोनीपत के गांव गढ़ी कुंडल में है. जयंत चौधरी जाट समुदाय से आते हैं और राज्य में 28 फीसदी के करीब जाट वोटर हैं. आरएलडी की मंशा बीजेपी के साथ मिलकर हरियाणा चुनाव लड़ने की है. ऐसे में आरएलडी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है, लेकिन बीजेपी जाट वोटों को अपने साथ जोड़ने के लिए दो से तीन सीट दे सकती है.

हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस के विकल्प के रूप लोकदल ही था, लेकिन अब लोकदल की जगह बीजेपी ने ले ली है. कांग्रेस आज भी अपनी जगह कायम है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल जिन सामाजिक, जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को देखते हुए हरियाणा की राजनीति में उतरना चाह रहे हैं उसमें उनकी राह आसान नहीं होगी. हां एक बात जरूर है कि अगर इन दलों के उतरने से इनका खेल भले ही बेहतर न हो सके, लेकिन दूसरे दलों का गेम बिगाड़ सकते हैं. बसपा और आसपा दलित वोटों का बिखराव करेंगी तो सपा के लड़ने से यादव वोट बंट सकता है और आरएलडी के उतरने से जाट वोटों बंट सकते हैं. इस तरह सियासी कद बढ़ाने के फिराक में यूपी के दल कहीं वोट कटवा साबित न हो जाएं?

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