शिवहर में लवली आनंद और रितु जायसवाल को रंजीत सिंह ने तनाव दे दिया; किसके वोट पर ओवैसी की चोट?
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बिहार में लोकसभा चुनाव के छठे चरण की शिवहर सीट पर टीका और टोपी लगाकर नामांकन करने पहुंचे राणा रंजीत सिंह ने एक साथ जेडीयू की लवली आनंद और आरजेडी की रितु जायसवाल को तनाव दे दिया है।असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने राणा रंजीत सिंह को शिवहर में कैंडिडेट बनाया है जिनके भाई राणा रणधीर सिंह इसी लोकसभा के अंदर मधुबन सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। राणा रंजीत सिंह के भाई चुनाव में गठबंधन धर्म निभाते हुए लवली आनंद का प्रचार कर रहे हैं। शिवहर में तीन कैंडिडेट हैं जिनमें मुख्य मुकाबला है। लवली आनंद और राणा रंजीत सिंह राजपूत हैं जबकि रितु जायसवाल वैश्य।

शिवहर में राजपूत वोटर लगभग 2 लाख हैं। लवली आनंद के पति आनंद मोहन इस सीट से 1996 और 98 में सांसद रह चुके हैं। 1994 में वैशाली से एक बार लोकसभा गईं लवली आनंद शिवहर सीट से पार्टी बदल-बदल कर कई बार लड़ चुकी हैं लेकिन हर बार हार जाती हैं। इस बार शिवहर में वाया जेडीयू वो एनडीए की उम्मीदवार बनने में कामयबा रही हैं जो उनके लिए 30 साल बाद दोबारा लोकसभा जाने का सबसे सुनहरा मौका है। शिवहर, सीतामढ़ी और मोतिहारी तीन जिनों में फैली शिवहर लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में चार पर भाजपा, एक पर आरजेडी के बागी विधायक और लवली के बेटे चेतन आनंद और एक सीट पर राजद के एमएलए का कब्जा है।

मौजूदा सांसद भाजपा की रमा देवी हैं जो तीन बार लगातार जीती हैं लेकिन इस बार सीट जेडीयू ने ले ली है। रमा देवी वैश्य हैं और उनके पति बृज बिहारी प्रसाद आरजेडी की सरकार में मंत्री थे। अपने जमाने के दबंग नेता में गिने जाने वाले बृज बिहारी की 1998 में न्यायिक हिरासत में इलाज के दौरान आईजीआईएमएस में हत्या हो गई थी। उसी साल रमा देवी आरजेडी के टिकट पर पहली बार मोतिहारी से संसद गई थीं। शिवहर में सबसे ज्यादा वैश्य वोटर हैं, जिनकी संख्या लगभग 25 फीसदी आंकी गई है। ऐसे में भाजपा का सीट देना और जेडीयू का राजपूत कैंडिडेट देना वैश्यों में नाराजगी की एक वजह हो सकती है।

वैश्यों की नाराजगी भुनाने के लिए लालू और तेजस्वी यादव ने शिवहर से रितु जायसवाल को लड़ाया है। रितु सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रही हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में रितु 1569 वोट से परिहार विधानसभा सीट हार गई थीं। शिवहर में मुसलमान दूसरे नंबर पर हैं जिनका वोट शेयर लगभग 18 फीसदी है। पिछड़ा, अति पिछड़ा और एससी-एससटी 35 परसेंट के आस-पास हैं। सवर्ण लगभग 18 परसेंट हैं। आरजेडी ने 2019 और 2014 में मुसलमान कैंडिडेट दिया था जो ध्रुवीकरण के कारण हार गए। आरजेडी ने इसलिए अबकि मुस्लिम के बदले वैश्य कैंडिडेट दिया है। आरजेडी को उम्मीद है कि रितु के लड़ने से एक तो ध्रुवीकरण नहीं होगा और दूसरा रमा देवी का पत्ता साफ होने से नाराज वैश्य को कुछ वोट उसे मिलेगा।

असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार राणा रंजीत सिंह के पिता सीताराम सिंह को भाजपा की रमा देवी ने 2009 में शिवहर लोकसभा में हराया था। अब रंजीत सिंह अपने पिता की सीट पर एआईएमआईएम के टिकट पर पिता की पार्टी आरजेडी के खिलाफ लड़ रहे हैं। इलाके में राजपूतों के बड़े नेता रहे सीताराम सिंह चार बार विधायक और आरजेडी की सरकार में मंत्री रहे। सीताराम मधुबन विधानसभा सीट से जनता पार्टी, जनता दल और राजद के टिकट पर 1985 से 2000 तक लगातार चार चुनाव जीते। खुद राणा रणधीर सिंह 2005 में अपना पहला चुनाव आरजेडी के टिकट पर जीते थे। पिछले दो चुनाव से वो भाजपा के एमएलए हैं।

वैश्य बहुल शिवहर में मुसलमानों का वोट राजपूतों से ज्यादा है। फिर भी जेडीयू और ओवैसी ने राजपूत जाति से लवली आनंद और राणा रंजीत सिंह को लड़ा दिया है। यह तथ्य आरजेडी की रितु जायसवाल को फायदा पहुंचाता नजर आता है। लेकिन जब आप ओवैसी को लेकर मुसलमानों में बढ़ रही दिलचस्पी पर गौर करते हैं तो आरजेडी के हाथ से मुसलमान वोट खिसकता नजर आता है। लवली और रितु दोनों शिवहर के नहीं हैं जिसे राणा रंजीत सिंह जोर-शोर से उठा रहे हैं। ज्यादातर यादव और सवर्ण किसे वोट देंगे, इसका अनुमान सबको है। ऐसे में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का वोट निर्णायक साबित हो सकता है।

याद रखने की बात ये भी है कि भाजपा की रमा देवी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद के सैयद फैसल अली को 3 लाख 40 हजार वोट के मार्जिन से हराया था। ध्रुवीकरण ने रमा देवी को 6 लाख के पार पहुंचा दिया जबकि फैसल अली 2.68 लाख पर अटक गए। ओवैसी का राजपूत कैंडिडेट जेडीयू और आरजेडी को कितने वोटों की चोट देता है, इस पर 2024 का नतीजा निर्भर करेगा।

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