लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही एक सप्ताह बाद सुचारू रूप से चली
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संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर को प्रारंभ हुआ था, लेकिन कुछ खास कामकाज नहीं हो सका। इसका एक बड़ा कारण यह था कि सत्र के पहले दिन से ही संसद में लगातार गतिरोध बना हुआ था, जिसके कारण बार-बार लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार को पहली बार संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही सुचारू एवं निर्बाध रूप से पूरी हो सकी। राज्यसभा और लोकसभा दोनों ही सदनों में तय नियमों के मुताबिक पूरे दिन की कार्यवाही चली। राज्यसभा की बात करें तो यहां शून्य काल के दौरान विभिन्न विपक्षी दलों ने अपने-अपने मुद्दे उठाए। इसके उपरांत प्रश्न काल भी हुआ। प्रश्नकाल के उपरांत भी राज्यसभा की कार्यवाही सुचारू रूप से चलती रही।गौरतलब है कि इससे पहले मौजूदा शीतकालीन सत्र की सभी बैठकों में मणिपुर, उत्तर प्रदेश के संभल, दिल्ली की कानून व्यवस्था, अजमेर दरगाह जैसे मामलों पर सदन में जमकर हंगामा हुआ। इसका नतीजा यह रहा कि एक भी दिन सदन की कार्यवाही नहीं चल सकी। हालांकि, इस गतिरोध को अब बातचीत के जरिए दूर किया गया है।लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने विभिन्न संसदीय दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इसका असर मंगलवार को संसद की कार्यवाही में देखने को मिला। राज्यसभा की कार्यवाही प्रारंभ होने पर सभापति जगदीप धनखड़ ने बताया कि विभिन्न सांसदों ने अजमेर दरगाह से संबंधित विवाद, संभल हिंसा, मणिपुर की कानून व्यवस्था, ओडिशा के लिए स्पेशल कैटेगरी स्टेट्स की मांग, तमिलनाडु के साइक्लोन, दिल्ली में बढ़ते अपराध, बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हमले जैसे मुद्दों पर चर्चा के प्रस्ताव दिए हैं।सभापति ने राज्यसभा सांसदों की राय मांगते हुए पूछा कि आप ही बताइए, क्या इन सभी मुद्दों पर स्थगन प्रस्ताव के तहत चर्चा स्वीकार की जा सकती है। कई सांसदों ने इस दौरान अपने मुद्दे उठाते हुए बोलने की कोशिश की, लेकिन सभापति ने उन्हें शून्य काल के दौरान तय विषयों पर बोलने के लिए कहा। राज्यसभा में विपक्ष के सांसद नियम-267 के अंतर्गत चर्चा की मांग कर रहे थे, लेकिन सभापति ने यह मांग अस्वीकृत करते हुए शून्य काल के दौरान विषय रखने के लिए कहा। इस पर मंगलवार को विपक्ष द्वारा कोई तीखा विरोध नहीं हुआ और और सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलती रही।

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