प्रतापगढ़ में मारे गए डीएसपी जिया उल हक की हत्या में कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की भूमिका की जांच सीबीआई करेगी। डीएसपी जिला उल हक की 2013 में नृशंस हत्या कर दी गई थी।
डीएसपी की पत्नी की ओर से दायर याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को रद कर दिया है। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी। ट्रायल कोर्ट ने राजा भैया और उनके चार साथियों के खिलाफ सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए जांच जारी रखने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि हमारे विचार में उच्च न्यायालय ने पुन: जांच और आगे की जांच के बीच एक अति तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया है। उच्च न्यायालय ने माना कि विशेष सीबीआई अदालत का 8 जुलाई 2014 का आदेश पुनः जांच के समान है।
हक की 2 मार्च 2013 को ड्यूटी के दौरान हत्या कर दी गई थी। वह कुंडा के बल्लीपुर गांव में चार लोगों द्वारा ग्राम प्रधान नन्हें यादव की हत्या के बाद पहुंचे थे। हक यादव को अस्पताल ले गए लेकिन पीड़ित को बचा नहीं सके। शव को गांव लाने पर 300 लोग जमा हो गये। इसी दौरान लोगों ने हमला कर दिया। राजा भैया का करीबी बताए जाने वाले एक व्यक्ति ने डीएसपी को गोली मार दी थी। इससे हक की मौत हो गई थी।
ट्रायल कोर्ट के फैसले को फिर से बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आगे की जांच का निर्देश देने में मजिस्ट्रेट की ओर से कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। निचली अदालत के आदेश में सीबीआई को उस समय राज्य सरकार में मंत्री रहे राजा भैया, कुंडा नगर पंचायत के तत्कालीन अध्यक्ष गुलशन यादव और कुंडा विधायक के तीन सहयोगिया हरिओम श्रीवास्तव, रोहित सिंह और गुड्डु सिंह की भूमिका की जांच के लिए कहा था।
मारे गए डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में इन लोगों का नाम लिया था। सीबीआई की तरफ से क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद आज़ाद ने उसी वर्ष विरोध याचिका दायर की थी।
सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी याचिका में डीएसपी की पत्नी ने आरोप लगाया कि सीबीआई ने राजा भैया की भूमिका की ओर इशारा करने वाले महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की है। उन्होंने सवाल किया कि पुलिस टीम ने उनके पति को कैसे अकेले छोड़ दिया। इतनी भीड़ में किसी अन्य पुलिसकर्मी को कोई चोट नहीं आई।
कहा कि उनके पति रेत खनन और अन्य दंगों के मामलों की जांच संभाल रहे थे। इसमें राजा भैया और उनके सहयोगियों की भी भूमिका थी। यह लोग उनके पति को खत्म करना चाहते थे। उन्होंने सीबीआई की उस चार्जशीट पर भी सवाल उठाए जिसमें उनके पति की हत्या के पीछे मारे गए प्रधान नन्हे यादव के परिवार का नाम लिया गया था।
आजाद ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट को जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है। इस संबंध में मजिस्ट्रेट ने आगे की जांच का आदेश दिया। यह दोबारा जांच से अलग मामला है।
कहा कि सीबीआई ने दो आरोप पत्र दायर किए और उनके पति की हत्या में 14 आरोपियों और 85 गवाहों को सूचीबद्ध किया। इनमें से 36 प्रमुख गवाहों के बयान दर्ज ही नहीं किए गए और यह राजा भैया व अन्य को क्लीन चिट दे दिया गया।