मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल से कुछ वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई। 2019 से ही भारत में इन सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनों को पीएम मोदी द्वारा हरी झंडी दिखाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
मगर सवाल है कि राजधानी, शताब्दी और दुरंतो के बावजूद वंदे भारत की जरूरत क्यों पड़ी? भारत के विशाल और सुस्त रेल नेटवर्क और बुनियादी ढांचे में तेजी लाने और अधिक आरामदायक यात्राओं के अनुभवों के लिए वंदे भारत को शुरू किया गया। मगर क्या कभी आपने सोचा है कि पीएम मोदी ही सभी वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी क्यों दिखाते हैं? विपक्ष का आरोप है कि पीएम मोदी श्रेय के भूखे हैं। लेकिन क्या यही एकमात्र स्पष्टीकरण वंदे भारत की शुरुआत करने के पीछे है?
यह एक आसान सा उत्तर हो सकता है कि चूंकि वंदे भारत मोदी सरकार की ड्रीम ट्रेन है इसलिए पीएम, रेल मंत्री के बजाए खुद ही इन ट्रेनों को हरी झंडी दिखाते हैं। पीएम मोदी इन ट्रेनों को किस तरह की प्राथमिकता और प्रतिबद्धता देते हैं, इसे कम से कम आंशिक रूप से पिछले साल दिसंबर में हुई घटना से समझा जा सकता है। जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में हावड़ा और जलपाईगुड़ी को जोड़ने वाली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी तभी उनकी मां हीराबा का निधन हुआ था। यहां तक कि उन्होंने अपने कार्यक्रम में भी बदलाव नहीं किया था।
क्या हुआ वंदे भारत का असर
वंदे भारत ट्रेनों की अधिकतम गति 160 किमी प्रति घंटा है। इसकी तुलना भारतीय ट्रेनों की औसत गति से करें जो 50 किमी प्रति घंटे के आसपास बनी हुई है। वंदे भारत ट्रेनों के बहाने ही सही भारतीय रेल की सुस्त पटरियों को 120-140 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों के काबिल बनाया जा रहा है। जिन रूटों को फिलहाल वंदे भारत से जोड़ा जा रहा है, उन रूटों पर पहले से ही लोकप्रिय ट्रेनें मौजूद हैं, मगर अल्ट्रा लग्जरी सिस्टम का आनंद लेने वाले यात्रियों की भी कोई कमी नहीं है। कम दूरी वाले रूटों पर वंदे भारत को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।
सरकार की योजना 2024 तक पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों को जोड़ते हुए 75 वंदे भारत ट्रेनें चलाने की है। राष्ट्रीय चुनावों से पहले वंदे भारत का स्लीपर-क्लास मॉडल लाने की भी योजना है। कुल मिलाकर, सरकार ने कई अन्य बातों के अलावा, कहा है कि वह श्रद्धालुओं को लोकप्रिय तीर्थ स्थलों की परेशानी मुक्त यात्रा प्रदान करना चाहती है। वंदे भारत एक ऐसी विरासत है जिसे शायद पीएम मोदी अपने पीछे छोड़ना चाहते हैं।
वैसे तो भारत का विशाल रेल नेटवर्क 30 अरब डॉलर के बदलाव के दौर से गुजर रहा है। वहीं रेलवे पर वंदे भारत ट्रेनों की गुणवत्ता और उनके संचालन को बनाए रखने का दबाव है, क्योंकि इसमें पीएम मोदी की विशेष रुचि है। लेकिन यह भी सच है कि 170 साल पुरानी व्यवस्था की छवि खराब बनी हुई है। लिहाजा वंदे भारत जैसी ट्रेनों के संचालन से इस व्यवस्था के और भी दुरुस्त होने के आसार नजर आ रहे हैं।