बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर विपक्षी एकता को लेकर पटना में 23 जून को मीटिंग होने वाली है। इस मीटिंग में जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक कई राज्यों के तमाम दल मौजूद रहेंगे।
लोकसभा चुनाव से करीब साल भर पहले एकता के इस आयोजन को बड़ी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। 2024 में 1977 और 1989 के फॉर्म्यूले को लागू करके भाजपा को हराने की बातें हो रही हैं। लेकिन अब तक सबसे ज्यादा 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश को लेकर ही विपक्ष की रणनीति कमजोर और निराश करने वाली दिख रही है।
इस मीटिंग में वोट प्रतिशत के लिहाज से उत्तर प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बसपा को न्योता ही नहीं मिला है, जबकि जयंत चौधरी जा ही नहीं रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से ये चर्चाएं भी शुरू हुई हैं कि जयंत चौधरी सपा की बजाय कांग्रेस के साथ जाना मुफीद समझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि सपा और कांग्रेस ही विपक्षी एकता की मीटिंग में यूपी से शामिल होते हैं तो फिर यह कैसी एकता होगी? यह बड़ा सवाल है। 2019 के आम चुनाव में बसपा ने यूपी में 19.26 वोट पाकर 10 सीटें जीत ली थीं, जबकि रालोद ने भी करीब दो फीसदी वोट पाए थे, जो आंकड़ा भले ही कम है। लेकिन पश्चिम यूपी में उसके साथ गठबंधन करना बड़े दलों के लिए फायदे का सौदा रहा है।
ऐसे में यदि बसपा और रालोद ही इस मीटिंग से अलग रहते हैं तो फिर यूपी के लिए विपक्षी एकता क्या कर पाएगी, यह समझना मुश्किल है। इसकी वजह है कि टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी और शिवसेना जैसे दल भले ही प्रभावी हों, लेकिन ये अपने ही राज्य में असर रखती हैं। इनके साथ मीटिंग करके सपा को यूपी में कुछ हासिल नहीं हो सकता। उसे अपनी ताकत से आगे तभी फायदा मिल सकता है, जब एकता की कवायद से यूपी में किसी तरह का गठजोड़ पनपे।
मायावती को बुलावा नहीं मिला और रालोद की राह अलग दिख रही है, उससे तो ऐसा कुछ होता दिख नहीं रहा। ऐसे में यह सवाल बाकी ही है कि इस एकता की मीटिंग में यूपी से अकेले अखिलेश शामिल होकर भी क्या कर लेंगे। इसके अलावा कांग्रेस का भी अब तक यूपी में गठबंधन को लेकर कोई रुख नहीं है। यही नहीं यदि वह साथ आती भी है तो उसकी ताकत को देखते हुए डील करना आसान नहीं होगा। एक तो कांग्रेस ने पिछली बार महज 6 फीसदी वोट पाए थे। लेकिन राष्ट्रीय दल होने के नाते वह भी बड़ी संख्या में सीटों पर लड़ना चाहेगी। ऐसे में अपने कोटे से सीटें छोड़ना सपा के लिए आसान नहीं होगा।
AAP का अल्टिमेटम भी बढ़ा रहा चिंता, क्या करेगी कांग्रेस
विपक्षी एकता की मीटिंग से पहले आम आदमी पार्टी ने शर्त रख दी है कि दिल्ली में शासन चलाने के लिए आए अध्यादेश के खिलाफ यदि कांग्रेस का समर्थन नहीं मिला तो हम बैठक का बहिष्कार करेंगे। बता दें कि इस अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने का भरोसा आप को कई दलों से मिल चुका है, लेकिन कांग्रेस अब तक इस पर शांत ही है। ऐसे में आप के अल्टिमेटम ने एकता से ठीक पहले रंग में भंग जैसी बात की है। हालांकि कांग्रेस ने साफ कहा है कि वह भले ही इस मीटिंग में ना आए, लेकिन वह साथ नहीं देगी। कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने तो साफ कहा कि यदि आप मीटिंग में नहीं जाती है तो फर्क क्या पड़ता है। आपको कोई मिस नहीं करेगा।