महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने ‘ऑर्गेनाइजर’ के एक लेख पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस लेख में भाजपा और एनसीपी के बीच गठबंधन को राज्य में एनडीए के घटते प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।अब एनसीपी अध्यक्ष ने कहा कि वह इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, “चुनाव के बाद बहुत से नेता अपने विचार और राय व्यक्त कर रहे हैं। लोकतंत्र में, अपनी राय व्यक्त करना उनका अधिकार है और मैं उन पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता।” राकांपा एक साल पहले शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हुई थी।
पवार ने कहा, ‘‘मैंने खुद का ध्यान विकास पर केंद्रित किया है कि हम कैसे अतिरिक्त सहायता प्रदान कर सकते हैं और अधिक विकास कार्यों को पूरा कर सकते हैं। मेरा प्रयास यह होगा कि हम महायुति के तौर पर कैसे नयी ऊर्जा के साथ राज्य विधानसभा चुनावों का सामना कर सकते हैं।’’ सत्तारूढ़ महायुति में शिवसेना, भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा शामिल हैं।
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में होने हैं। पत्रिका में आरएसएस विचारक द्वारा लिखे गए लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया गया है और इसे “अति आत्मविश्वासी” भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए ‘आंख खोलने वाला’ बताया गया है। इसमें महाराष्ट्र का भी संदर्भ था, जहां भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा और उसकी सीटों की संख्या 2019 की 23 से घटकर नौ रह गई।
इसमें कहा गया था,‘‘महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति और ऐसी जोड़तोड़ का एक प्रमुख उदाहरण है जिससे बचा जा सकता था। अजित पवार के नेतृत्व वाला राकांपा गुट भाजपा में शामिल हो गया जबकि भाजपा और विभाजित शिवसेना (शिंदे गुट) के पास आरामदायक बहुमत था। शरद पवार दो-तीन साल में फीके पड़ जाते क्योंकि राकांपा अपने भाइयों के बीच अंदरूनी कलह से ही कमजोर हो जाती।’’
इसमें यह भी कहा गया, ‘‘ यह गलत सलाह वाला कदम क्यों उठाया गया? भाजपा समर्थक आहत थे क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की इस विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उन्हें सताया गया था। एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर ली। महाराष्ट्र में नंबर वन बनने के लिए वर्षों के संघर्ष के बाद आज वह सिर्फ एक और राजनीतिक पार्टी बन गई है और वह भी बिना किसी अलग पहचान वाली।’’