विपक्षी दलों की बैठक का सिलसिला पटना से बेंगलुरु तक पहुंचते-पहुंचते नजारा बदलने लगा है। पटना में जिस नीतीश कुमार को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, बेंगलुरु की पीसी में वह दिखे तक नहीं।
इसके बाद से कयासबाजियों का दौर शुरू हो गया है और कहा जा रहा है कि जेडीयू ने मशाल जलाकर कांग्रेस को थमा दी है। बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में अरविंद केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे का संबोधन हुआ। लेकिन इंडिया की पीसी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिखे तक नहीं। इतना ही नहीं, बिहार की प्रदेश सरकार में उनके सहयोगी लालू यादव भी बेंगलुरु में अपनी बात नहीं रख पाए।
नहीं दिखे नीतीश कुमार
बेंगलुरु में विपक्ष की बैठक खत्म हुई तो प्रेस कांफ्रेंस में नेताओं के बोलने का सिलसिला शुरू हुआ। इसमें मल्लिकार्जुन खरगे, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी समेत विभिन्न नेताओं ने बोलने का सिलसिला शुरू किया। लोगों को इंतजार था कि नीतीश कुमार को भी बोलने का मौका दिया जाएगा। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने ही विपक्षी एकजुटता की शुरुआत की थी। बिहार में जब पहली बार विपक्षी दलों की बैठक हुई थी तो वहां पर नीतीश कुमार ही सर्वेसर्वा थे। विभिन्न दलों को एक मंच पर लाने में भी उनकी भूमिका खास नजर आई थी। लेकिन बेंगलुरु में बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस तक में नीतीश कुमार नहीं दिखे।
नहीं मिल रहे कई सवालों के जवाब
विपक्षी दलों का कुनबा पटना से बेंगलुरु पहुंचा तो कई सवाल थे। विपक्ष कुनबा 26 दलों का हो गया और नामकरण भी कर लिया गया। इसके साथ विपक्ष ने कुछ सवालों के जवाब तो ढूंढे, लेकिन कुछ नए सवाल भी खड़े हो गए। विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रख लिया और सीधा मुकाबला प्रधानमंत्री मोदी से करने ऐलान भी कर दिया। लेकिन इस लड़ाई में उनके गठबंधन का चेहरा कौन होगा, इस पर कोई जवाब नहीं दिया गया। बेंगलुरु की प्रेस कांफ्रेंस में इस बाबत सवाल उठे तो मुंबई में होने वाली अगली बैठक का हवाला दे दिया गया। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि विपक्ष के गठबंधन के लिए संयोजकों की एक टीम बनाई जाएगी।
यह तय किया गया है एजेंडा
गौरतलब है कि देश के 26 विपक्षी दलों ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपने नए गठबंधन का नाम तय करने के साथ यह भी कहा कि वे देश के समक्ष एक वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पेश करेंगे तथा शासन के सार एवं शैली में इस तरह से बदलाव करेंगे कि वो अधिक परामर्श योग्य, लोकतांत्रिक और सहभागी हों। इन दलों ने सरकार पर भारतीय संविधान के मूलभूत स्तंभों-धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, आर्थिक संप्रभुता, सामाजिक न्याय और संघवाद-को कमजोर करने और देश में नफरत फैलाने का आरोप लगाया।