– डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) मानवता के लिए त्याग करने वाला महावीर है:-
महावीर का जन्म वैशाली (बिहार) के एक राज परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। बचपन से ही वे 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ की आध्यात्मिक शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे। एक राजा के पुत्र के रूप में युद्ध के बारे में उनका विचार भिन्न प्रकार का था। वे क्रोध, मोह, लालच, विलासिता पूर्ण वस्तुओं आदि पर विजय पाना सच्ची विजय मानते थे। वे आरामदायक और विलासपूर्ण जीवन पसंद नहीं करते थे। उनका विश्वास एक न्यायपूर्ण प्रजातंत्र में था। महावीर जैसे -जैसे बड़े हुए उनका ध्यान समाज में फैले छूआछूत, भेदभाव, धार्मिक रूढ़िवादिता, अन्याय, गरीबी, दुखों तथा रोगों की पीड़ा की तरफ ज्यादा खिंचने लगा। इन्हीं सब बातों ने महावीर के मस्तिष्क में कोलाहल मचा रखा था। वह समय देश की संस्कृति के इतिहास का अंधकारमय काल था। एक राजा के घर में पैदा होने के बाद भी महावीर जी ने युवाकाल में अपने घर को त्याग कर वन में जाकर आत्मिक आनन्द को पाने का रास्ता चुना। सालवृक्ष के नीचे 12 वर्षों के तप के बाद उन्हें ‘कैवल्य’ ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई। विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में निर्वाण को प्राप्त हुये।
(2) जिसने अपने मन, वाणी तथा काया को जीत लिया वे जैनी हैं:-
भारत अनेक धर्मों का पवित्र गृह है। इन धर्मों ने मनुष्य जाति को जीवन जीने की सच्ची राह दिखलाई हैं। जैन धर्म भारत की पवित्र भूमि में जन्मा पवित्र धर्म और विश्वव्यापी दर्शन है। ‘जैन’ कहते हैं उन्हें, जो ‘जिन’ के अनुयायी हों। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ माने-जीतना। ‘जिन’ माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं ‘जिन’। जैन धर्म अर्थात ‘जिन’ भगवान का धर्म। ‘जैन धर्म’ का अर्थ है- ‘जिन का प्रवर्तित धर्म। महावीर 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर हैं और उनके द्वारा प्रतिपादित जैन धर्म के स्वरूप का ही पालन आज उनके अनुयायियों द्वारा किया जाता है। महावीर स्वामी के अनेक नाम हैं- अर्हत, जिन, वर्धमान, निर्ग्र्र्रथ, महावीर, अतिवीर आदि, इनके ‘जिन’ नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम ‘जैन धर्म’ पड़ा। जिन भगवान के अनुयायी जैन कहलाते हैं और उनकी मान्यता के अनुसार जैन धर्म अनादिकाल से चला आ रहा है और इसका प्रचार करने के लिए समय-समय पर तीर्थंकरों का आविर्भाव होता रहता है। महावीर अपनी इन्द्रियों को वश में करने के कारण ‘जिन’ कहलाये एवं पराक्रम के कारण ‘महावीर’ के नाम से विख्यात हुए।
(3) जैन धर्म की मुख्य शिक्षा ‘‘अहिंसा’’ है:-
जैन धर्म ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पक्षों को बहुत प्रभावित किया है। दर्शन, कला और साहित्य के क्षेत्र में जैन धर्म का महत्वपूर्ण योगदान है। जैन धर्म में वैज्ञानिक तर्कों के साथ अपने सिद्धान्तों को जन-जन तक पहंुचाने का प्रयास किया गया है। अहिंसा का सिद्धान्त जैन धर्म की मुख्य शिक्षा है। जैन धर्म में पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधे तक की हत्या न करने का अनुरोध किया गया है। अहिंसा की शिक्षा से ही समस्त देश में दया को ही धर्म प्रधान अंग माना जाता है। जैन धर्म की मानवीय शिक्षाओं से प्रेरित होकर कई दानवीरों ने उपासना स्थलों, औषधालयों, विश्रामालयों एवं पाठशालाओं के निर्माण करवाये। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धान्त ‘अनेकांतवाद’ है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। जीव या आत्मा का मूल स्वभाव शुद्ध, बुद्ध तथा सच्चिदानंदमय है।
(4) महावीर स्वामी ने संसार को ‘‘जियो और जीने दो’’ का संदेश दिया:-
जैनों में 24 तीर्थकर हैं। यथार्थ में जैन धर्म के तत्वों को संग्रह करके प्रकट करने वाले महावीर स्वामी ही हुए हैं। पंचशील सिद्धान्त के प्रर्वतक एवं जैन धर्म के चौबीसवंे तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उन्होंने दुनियाँ को सत्य, अहिंसा तथा त्याग जैसे उपदेशों के माध्यम से सही राह दिखाने की सफल कोशिश की है। महावीर स्वामी ने जैन धर्म में अपेक्षित सुधार करके इसका व्यापक स्तर पर प्रचार किया। महावीर स्वामी के कारण ही 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों ने एक विशाल धर्म का रूप धारण किया। महावीर जी ने जो आचार-संहिता बनाई वह है- 1. किसी भी प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना, 2. किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना, 3. मिथ्या भाषण न करना, 4. ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, 5. वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना। वर्धमान महावीर जी ने संसार में बढ़ती हिंसक सोच तथा अमानवीयता को शांत करने के लिए मुख्य रूप से अहिंसा के विचारों पर आधारित उपदेश दिए, उनके उपदेश तथा ज्ञान बेहद सरल भाषा में है जो आम जनमानस को आसानी से समझ आ जाते हैं। भगवान महावीर ने इस विश्व को ‘‘जियो और जीने दो’’ का एक महान संदेश दिया। सभी जैनी पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं।
(5) परमात्मा एक है, सभी धर्म एक है तथा सारी मानव जाति एक है:-
हमारा प्रयास होना चाहिए कि हमारे घरों में सभी धर्माें की पवित्र पुस्तकंे तथा उनके मार्गदर्शकों के चित्र हों तथा एक ही परमात्मा की ओर से युग-युग में भेजी गई इन पवित्र पुस्तकों में समय-समय पर जो ज्ञान हम पृथ्वीवासियों के लिए परमात्मा ने प्रगतिशील श्रृंखला के अन्तर्गत सिलसिलेवार भेजा है, उन सभी ईश्वरीय ज्ञान के प्रति बच्चों में बाल्यावस्था से ही श्रद्धा एवं सम्मान की भावना पैदा करें। बच्चों को परिवारजन, स्कूल के टीचर्स तथा समाज के लोग बताये कि परमात्मा एक है, सभी धर्म एक है तथा सारी मानव जाति उसी एक परमात्मा की संतान है। हमें पूर्ण विश्वास है कि स्कूल, परिवार और समाज के संयुक्त प्रयास से परमात्मा को, धर्म को तथा पवित्र पुस्तकों के माध्यम से भेजे दिव्य ज्ञान को अलग-अलग समझने का अज्ञान धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगा।
(6) जैन धर्म की अहिंसा, त्याग तथा प्रेम की शिक्षायें सारी मानव जाति के लिए है:-
महावीर ने तीर्थकर पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया। वे ऐसे धार्मिक मार्गदर्शक थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल मंे जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। आज के मनुष्य को वही धर्म-दर्शन प्रेरणा दे सकता है तथा मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक समस्याओं के समाधान में प्रेरक हो सकता है जो वैज्ञानिक अवधारणाओं का परिपूरक हो, लोकतंत्र के
आधारभूत जीवन मूल्यों का पोषक हो, सर्वधर्म समभाव की स्थापना में सहायक हो, न्यायपूर्ण तथा अहिंसा पर आधारित विश्व व्यवस्था एवं सार्वभौमिकता की दृष्टि का प्रदाता हो तथा विश्व शान्ति एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का प्रेरक हो। जैन धर्म की शिक्षायें एक अहिंसक, त्यागपूर्ण तथा प्रेमपूर्ण विश्व व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
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