बहिष्कार के बहाने विपक्षी एकता का आविष्कार? पहली बार 19 दल साथ,
Sharing Is Caring:

नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार में विपक्ष एकजुट हो गया है। नए संसद भवन के उद्घाटन में तमाम पार्टियों को शामिल होने के लिए न्योता दिया गया था। मगर उद्घाटन का बहिष्कार की घोषणा करने वाली पहली राजनीतिक पार्टी तृणमूल कांग्रेस थी।

बुधवार दोपहर तक नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को न बुलाए जाने के विरोध में 18 और विपक्षी दलों ने भी बहिष्कार का राग छेड़ा। सूची में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, राजद, जदयू, राकांपा के अलावा वाम दल भी शामिल हैं। वहीं तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल (बीजेडी) जैसी पार्टियां उद्घाटन में भाग लेंगी। देर से ही सही, ये पार्टियां बीजेपी के करीब चल रही हैं। नए संसद भवन का उद्घाटन लोकसभा चुनाव 2024 के पार्टी समीकरण की सूरत को तैयार कर रहा है। आइए जानते हैं कैसे?

एक सुर में 19 विपक्षी दल
19 विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने का आरोप लगाते हुए एक संयुक्त बयान में लिखा, “लोकतंत्र की भावना को संसद से आत्मसात किया जाता है। ऐसी स्थिति में हम संयुक्त रूप से घोषणा करते हैं कि हम नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार कर रहे हैं।” विपक्षी पार्टियों ने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ लड़ाई हर हाल में जारी रहेगी और हम इस संदेश को देश के आम लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। विपक्ष के इस साझा बयान के कई मायने हैं। ऐसा अनुमान है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में वे इस मुद्दे को लेकर एक साथ मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हो जाएं।

विपक्ष ने आरोप लगाया कि रविवार को उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया। उनके स्पष्टीकरण के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव से पहले सारा श्रेय खुद ले लिया है। वह सारी लाइमलाइट खुद ही सोख लेना चाहते हैं। इसलिए देश की पहली आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) राष्ट्रपति द्रौपदी की उपेक्षा की जा रही है। पूर्व राष्ट्रपति और दलित समाज के प्रतिनिधि कोविंद को भी न्यौता नहीं मिला।

सावरकर बनाम गांधी-नेहरू
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने आरोप लगाया कि नए भवनों के पक्ष में राष्ट्रपति की उपेक्षा का यह इतिहास कोई नया नहीं है। नए संसद भवन की आधारशिला 10 दिसंबर, 2020 को रखी गई थी। लेकिन उस शिलान्यास समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नहीं बुलाया गया था। अगले चरण में, जब 11 जुलाई, 2022 को राष्ट्रीय प्रतीक की कांस्य प्रतिमा का उद्घाटन किया गया, तो कोविंद का नाम आमंत्रित सूची में नहीं था। हालांकि उस वक्त भी वे राष्ट्रपति की सीट पर थे। संयोग से 28 मई को विनायक दामोदर सावरकर की 140वीं जयंती है। विरोधियों ने आरोप लगाया कि मोदी महात्मा गांधी, नेताजी, जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिनों की अनदेखी करते हुए संसद भवन के उद्घाटन के लिए सावरकर के जन्मदिन को चुनकर हिंदुत्व के पंख लगाने की कोशिश कर रहे हैं।

गठबंधन का अनुमान
नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान जहां एक तरफ 19 पार्टियां विरोध कर रही हैं तो वहीं तेलुगु देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल जैसी पार्टियां सरकार के निर्णय के सम्मान करते हुए इस उद्घाटन समारोह में शामिल होंगी। टीडीपी निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में फिर से शामिल होने की उम्मीद में बीजेपी के करीब आ रही है। ऐसे में नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान पार्टियों का इस कदर दो गुटों में बंट जाना 2024 की सूरत को तैयार कर रहा है।

Sharing Is Caring:

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version