राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होने वाली है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान की भूमिका में रहेंगे। इससे पहले पीएम मोदी 11 दिन के विशेष अनुष्ठान पर हैं। इस दौरान वह देश के अलग-अलग मंदिरों में पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
आम चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री की यह यात्रा दक्षिण भारत में एक खास संदेश तो भेज ही रही है। वहीं, उनकी यात्रा से एक खास पैटर्न तैयार हो रहा है, जो रामायण से मेल खाता है। पीएम मोदी जिन जगहों पर पहुंचे हैं, भगवान राम अपने वनवास के दौरान वहां से गुजर चुके हैं। अपने 11 दिनों के अनुष्ठान के दौरान पीएम मोदी सबसे पहले महाराष्ट्र स्थित पंचवटी के कलाराम मंदिर पहुंचे थे। यह वही जगह है, जहां पर भगवान राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ 14 साल के वनवास के दौरान सबसे ज्यादा समय बिताया था। यही वह जगह है, जहां पर रावण ने छल से सीता का हरण किया था। इस घटना ने राम के जीवन में काफी अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद ही वह दक्षिण की तरफ बढ़ते हुए रावण को हराने के लिए श्रीलंका तक पहुंचे थे।
लेपाक्षी और श्री रामस्वामी मंदिर
नासिक के बाद पीएम मोदी दक्षिण में करीब 1000 किमी दूर लेपाक्षी पहुंचे थे। आंध्र प्रदेश में स्थित इस जगह पर उन्होंने 16 जनवरी को वीरभद्र मंदिर में दर्शन किए थे। लेपाक्षी का भी रामायण में काफी महत्व है। कथा के अनुसार सीता का हरण करने के बाद रावण उन्हें पुष्पक विमान पर बैठाकर लंका की तरफ ले जा रहा था। रास्ते में गिद्ध जटायु ने उन्हें रोक लिया और दोनों में भीषण युद्ध हुआ। लड़ाई के दौरान रावण ने तलवार से जटायु का पंख काट दिया और वह बुरी तरह से घायल होकर लेपाक्षी में गिर पड़े। सीता की तलाश में निकले राम-लक्ष्मण यहां पहुंचे और जटायु से मुलाकात हुई। यहीं पर भगवान राम ने जटायु को मोक्ष दिया था। आंध्र प्रदेश के बाद पीएम मोदी श्री रामस्वामी मंदिर पहुंचे थे। यह मंदिर केरल के थिसूर जिला स्थित थ्रिप्रेयर में है। मान्यता है कि जब हनुमान लंका से सीता का पता लगाकर लौटे थे यहां पर उनका भव्य स्वागत हुआ था। इस मंदिर में चकयार कूथू नाम की पूजा होती है। इस दौरान लंका में सीता और हनुमान के मिलने और सीता द्वारा चूड़ामणि देने की घटना को प्रस्तुत किया जाता है। यह करीब 12 दिन तक चलता है और हनुमान व सीता के बीच संवाद को प्रस्तुत किया जाता है।
रंगनाथस्वामी मंदिर से यह कनेक्शन
पीएम मोदी की यात्रा का अगला पड़ाव तमिलनाडु के त्रिचि में स्थित श्री रंगनाथस्वामी मंदिर था। इस मंदिर का भी रामायण से खास कनेक्शन है। मान्यता है कि रावण का वध करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे तो उनके साथ विभीषण भी आए थे। जब विभीषण लौटने लगे तो भगवान राम ने उन्हें विष्णु की एक मूर्ति दी थी। यह लंका युद्ध में मदद करने के बदले एक प्रतीक स्वरूप था। इसके साथ ही भगवान राम ने विभीषण से कहा था कि उन्हें इस मूर्ति को कहीं रखना नहीं है। अगर उन्होंने इसे जमीन पर रखा तो फिर वह मूर्ति वहीं स्थापित हो जाएगी और उसे उठाया नहीं जा सकेगा। बताते हैं कि जब विभीषण त्रिचुरापल्ली पहुंचे तो उन्होंने पूजा करने से पहले कावेरी नदी में स्नान करने का फैसला किया। उन्होंने विष्णु की मूर्ति एक बच्चे को दे दी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक यह बच्चा कोई और नहीं, स्वयं भगवान गणेश थे। वह नहीं चाहते थे कि भगवान विष्णु की मूर्ति भारत से बाहर जाय। जब विभीषण पूजा करके लौटे तो उन्होंने देखा कि मूर्ति जमीन पर रखी हुई थी। बाद में चोल वंश के राजा को हजारों साल बाद यह मूर्ति मिली और उन्होंने रंगनाथस्वामी मंदिर में इसकी स्थापना कराई।
रामेश्वरम और धनुषकोडि और अयोध्या
प्रधानमंत्री मोदी त्रिचि से रामेश्वरम पहुंचेंगे। यह रामेश्वरम से करीब 230 किमी दूर दक्षिण में है। यहां पर पीएम मोदी मशहूर अरुलमिगु रामनाथस्वामी मंदिर जाएंगे जो कि चार धाम में से एक है। यह मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है और अपनी वास्तुकला के मशहूर है। मान्यता है कि श्रीलंका से लौटने वक्त भगवान राम ब्रह्म हत्या (रावण को मारने) का प्रायश्चित करना चाहते थे। भगवान शिव ने उन्हें सलाह दी कि वह शिवलिंग बनाकर इसकी पूजा करें। इसके बाद राम ने हनुमान को शिवलिंग लाने के लिए कैलाश भेजा। हनुमान को लौटने में विलंब होने लगा तो सीता ने समुद्र तट पर पड़ी रेत से शिवलिंग बनाया था। इसके बाद पीएम मोदी धनुषकोडि पहुंचेंगे। यहां वह कोथांदरामस्वामी मंदिर में पूजा करेंगे। यह मंदिर श्री कोथांद्रामा स्वामी को समर्पित है। कोथांद्रामा का अर्थ है धनुष के साथ राम। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने श्रीलंका से लौटने के बाद अपनी धनुष द्वारा राम सेतु को तोड़ डाला था। भगवान राम के वनवास और रावण विजय से जुड़ी यात्राओं का अंत अयोध्या पहुंचने के बाद हुआ था। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी भी आखिर में अयोध्या पहुंच रहे हैं, जहां वह 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा में हिस्सा लेंगे।