धरती हमारी माता है तथा परमात्मा हमारा पिता है!
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अन्तर्राष्ट्रीय धरती माता दिवस (22 अप्रैल) विशेष लेख

– डा0 जगदीश गांधी, संस्थापक-प्रबन्धक,

 सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) धरती हमारी माता है तथा परमात्मा हमारा पिता है:-

            संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 22 अप्रैल को अन्तर्राष्ट्रीय धरती माता दिवस सारे विश्व में मनाने की घोषणा की गयी है। पहली बार यह वर्ष 1970 में इस उद्देश्य से मनाया गया था कि लोगों को अपनी धरती माता के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। धरती हमारी माता है, परमात्मा हमारा पिता है। यह सारी धरती एक कुटुम्ब तथा एक देश है और हम सब इसके नागरिक हैं, इन विचारों को संसार के बच्चों को बाल्यावस्था से ही देने का समय अब आ चुका है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है – माता भूमिः पुत्रोहं पृथिव्या अर्थात वसुंधरा जननी है और मैं इसका पुत्र/पुत्री हूँ। हमने अपनी धरती माता को जख्मों से घायल कर दिया है। हमारे पृथ्वी ग्रह पर ग्लोबल वार्मिंग, कानूनविहीनता, आतंकवाद तथा परमाणु शस्त्रों की होड़ के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। पराबैंगनी किरणांे को पृथ्वी तक आने से रोकने वाली ओजोन परत में छेद हो गया है। धरती कराह रही है इसके लिए निश्चय ही हम सभी धरती वासी दोषी हैं। इस स्वच्छ श्यामला धरा को हरी-भरी तथा प्रदूषण से मुक्त रखने का दायित्व हम सभी एकजुट होकर निभा सकते हैं। वही दूसरी ओर भारत ने अपना अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा में स्थापित करके इतिहास रच दिया है। इस ऐतिहासिक सफलता के लिए हम सभी विश्ववासियों सहित भारतीय वैज्ञानिकांे को हार्दिक बधाइयाँ देते हैंं।

(2) धरती माता युद्ध तथा आतंकवाद से उत्पन्न अपनी संतानों की पीड़ा से कराह रही है:-

            संसार के लोगों ने समस्याओं के हल के लिए लड़ाई का रास्ता खोज निकाला है। मानव जाति को इसके अलावा कोई सभ्य तरीका समझ में नहीं आता है। पति-पत्नी आपसी मतभेद के चलते एक दूसरे को जान से मार देते हैं। देशों के बीच आपसी मतभेद के चलते युद्ध होते हैं। एक-दूसरे को मारने के लिए बड़े-बड़े घातक परमाणु बम बन गये हैं। सारी मानव जाति का विनाश करने के लिए युद्धों की जमकर तैयारी करते चले जा रहे हैं। मानव सभ्यता का इतिहास इस बात का साक्षी है कि संसार की मानव जाति ने अपने आपसी मतभेदों को हल करने का अब तक जो तरीका ईजाद किया है, वह युद्ध और आतंकवाद है। मनुष्य आपसी मतभेदों के हल के लिए पाषाण युग में पत्थरों से लड़ता था। इसके बाद लाठी-डण्डे से लड़ाईयाँ हुई। थोड़ा और विकास हुआ तो तलवारों-भालों से लड़ा गया। बुद्धि का और विकास हुआ तो मनुष्य बन्दूकों से लड़ा। उसके बाद अब परमाणु बमों और मिसाइलों से तथा आधुनिक रासायनिक एवं जैविक हथियारों लड़ने की तैयारी कर रहा है।

(3) उठ जाग मुसाफिर अब भोर भयी अब रैन कहा जो सोवत है:-

            आप देखे यूरोप के 27 देश जो द्वितीय विश्व महायुद्ध में जमकर एक-दूसरे से लडे़े थे। इन देशों ने आपसी विश्वव्यापी समझदारी विकसित करके अपने-अपने देश के ऊपर एक यूरोपियन संसद बना ली। इनमें से 16 देशों ने यूरोपियन करेन्सी निर्मित करके एक अर्थ व्यवस्था बना ली। पूर्व जर्मनी तथा पश्चिम जर्मनी आपस में 70 वर्षो तक आपस में खूब लड़ते रहे। जर्मनी ने बर्लिन की दीवार खड़ी करके अपने को दो टुकड़ों में बॉट लिया। जर्मनवासियों में वर्षो बाद यह समझदारी विकसित हुई कि आपस में लड़ना ठीक नहीं है। ये समझदारी आते ही दोनों देश आपसी परामर्श करके मिलकर एक हो गये। दोनों देशों को बांटने वाली बर्लिन की दीवार तोड़ डाली गयी। सोचे ये देश आपस में लड़ते समय सुखी थे या फिर आपसी परामर्श करके मिलजुल कर रहने के निर्णय से अब ज्यादा सुखी हैं। इन देशों ने युद्ध की जगह परामर्श को चुनने की समझदारी दिखाई। परामर्श से भ्रान्तियाँ दूर हो जाती है और साझा लाभ की निश्चयात्मक स्थिति तक पहुँच जाते हैं।

(4) पल में परलय होगी तो बहुरि करेगा कब?

            अब तो दो ही अंतिम विकल्प हैं कि या तो मिलजुल कर अपनी-अपनी राष्ट्रीय सरकारों के ऊपर ‘विश्व की एक सरकार बनाये’ अन्यथा अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादियों द्वारा विश्व को अपनी मर्जी से चलाने के लिए छोड़ दंे। यूक्रेन-रूस की समस्या, उत्तरी एवं दक्षिणी कोरिया की समस्या, इजरायल और फिलिस्तीन की समस्या, कश्मीर के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान, सीरिया की समस्या व तालिबान आदि की समस्यायें दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। बारूद के ढेर पर बैठी है यह दुनिया, एटम बमों के जोर पर ऐठी है यह दुनिया। हमने धरती, पाताल तथा अन्तरिक्ष में मानव जाति को सम्पूर्ण सर्वनाश करने के लिए मिसाइलें फिट कर रखी हैं।

(5) बाल्यावस्था से बालक का दृष्टिकोण विश्वव्यापी बनाना चाहिए:-     

            सारी सृष्टि का रचनाकार परमपिता परमात्मा सम्पूर्ण धरती के समस्त मानवजाति को एकसमान रूप से प्रेम करता है। परमपिता परमात्मा की तरह ही हमें भी अपनी आत्मा के पिता परमात्मा की तरह विश्वव्यापी दृष्टिकोण का बनना चाहिए। यदि आप अपने परिवार को अच्छा बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं तो आप इस भावना को बढ़ाते हुए पूरे देश के निर्माण के लिए भी प्रयास करें। यदि आप अपने देश के निर्माण के लिए अच्छा कार्य कर रहे हैं तो इस भावना को बढ़ाते हुए पूरे विश्व को कुटुम्ब की तरह बनाने के लिए भी कार्य करें। कहने का तात्पर्य यह है कि आप अच्छा काम कर रहे हैं तो उसे परिवार या देश की सीमाओं में सीमित न करें। हमें अपने दृष्टिकोण को निरन्तर प्रयास करके विश्वव्यापी बनाना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद एवं तृतीय विश्व युद्ध की युद्ध भूमि बनने से पहले भारत को अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एक कुटुम्ब बनाने की आवश्यकता हैै। भारत बचेगा तभी जब वह आगे बढ़कर सारी दुनिया को बचायेंगा वरना पूरा विश्व जलकर राख हो जायेगा। जगत गुरू भारत की चिंता अब सारे विश्व को बचाने की होनी चाहिए। अगला एक कदम बढ़ाकर ‘जय जगत’ के उद्घोष को साकार करना है। अर्थात सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाना है। 

(6) चलो दुनियाँ को स्वर्ग बनाये हम प्रेम से और प्यार से:-         

            यह सृष्टि केवल मनुष्य के लिए ही नहीं है वरन् इस पर जीव-जन्तुओं व वनस्पति का भी पूरा अधिकार है। अतः मनुष्य को उस महान रचनाकार परमात्मा द्वारा प्रदत्त अपार संसाधनों का उपयोग विवेकी ढंग से करना चाहिए तथा उन शक्तियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अरबों वर्ष पूर्व यह ब्रह्ममाण्ड सहित यह प्यारी धरती हमें सौंपी है। अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर आ जुटे हैं। मानव मन में जगमगाते हुए ये ग्रह-नक्षत्र, आकाशगंगायें और नीहारिकायें चिरअतीत से यह जिज्ञासा जगाते रहे हैं कि क्या इस विराट ब्रह्ममाण्ड में हम अकेले ही हैं अथवा पृथ्वी से बाहर और भी कहीं जीवन है। अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर आ जुटे हैं।

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