दोगली राजनीति’ करते हैं उद्धव ठाकरे, वह बालासाहेब से बिल्कुल उलट हैं : शिंदे
Sharing Is Caring:

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपनी पूर्व पार्टी के प्रमुख और अब प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे पर मंगलवार को तीखा हमला करते हुए उन पर ‘‘दोगली राजनीति” करने का आरोप लगाया। शिंदे ने साथ ही यह आरोप भी लगाया कि लगभग दो साल पहले जब वह शिवसेना से अलग हुए थे तब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकरे शिवसेना में उनकी वापसी के लिए शांति प्रस्ताव देने का नाटक करते हुए उनके घर पर हमले की साजिश रच रहे थे। अब “असली” शिवसेना के प्रमुख शिंदे ने कहा कि उद्धव पार्टी के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के बिल्कुल उलट हैं और उनकी रुचि केवल अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाने में रही। जबकि उनके पिता हमेशा अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहे और अपनी बातों से कभी पीछे नहीं हटे।
कुर्सी के लालच में बालासाहेब की विचारधारा को त्याग दिया
शिंदे ने यहां अपने आवास पर एक विशेष साक्षात्कार में आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे ने जब भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस से हाथ मिलाया तो उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच में बालासाहेब की विचारधारा को त्याग दिया। उन्होंने कहा, “हम असली शिवसेना हैं और बालासाहेब के हिंदुत्व और राज्य के विकास के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहे हैं।” उन्होंने कहा, ”उद्धव के दल को एक ”हिंदुत्व” पार्टी नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन्होंने उस कांग्रेस से हाथ मिलाया है जो सावरकर का अपमान करती है और वे अब बालासाहेब को ”हिंदू हृदय सम्राट” भी नहीं कह सकते। जब शिंदे से यह पूछा गया कि क्या जून 2022 में उनके विद्रोह के बाद उद्धव ठाकरे ने उन्हें वापस आने के लिए सम्पर्क किया और मुख्यमंत्री पद की पेशकश की, उन्होंने कहा, “उन्होंने (ठाकरे ने) मेरे पास एक दूत भेजा और जब वह व्यक्ति मुझसे बात कर रहा था, तो उन्होंने घोषणा की कि वह मुझे पार्टी से बाहर निकाल रहे हैं।”
कोई दूसरा बाला साहेब ठाकरे नहीं हो सकता
मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा, ” उन्होंने (उद्धव) एक बैठक की जिसमें मेरा पुतला फूंकने, मेरे घर पर हमला करने का आह्वान किया, इस तरह की चीजें हो रही थीं। ये बैठकें तब हो रही थीं जब उन्होंने कथित तौर पर मुझसे बात करने के लिए लोगों को भेजा था। ‘दोगली राजनीति, चेहरे पर अलग, पेट में अलग, होठों पर अलग।” उन्होंने कहा, “बाला साहेब कुछ और थे। उन्हें जो कहना होता था, वह कहते थे और वह कभी भी अपनी बातों से पीछे नहीं हटते थे। वह जो भी एक बार कहते थे, वह पत्थर की लकीर बन जाता था। कोई दूसरा बाला साहेब ठाकरे नहीं हो सकता।” उद्धव ठाकरे से अलग होने के तुरंत बाद भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बने शिंदे (60) ने कहा कि जब 2019 में विधानसभा चुनाव हुए, तो लोगों का जनादेश भाजपा-शिवसेना सरकार के लिए था।
कई बड़ी योजनाएं शुरू की, सभी का मुख्य एजेंडा विकास
उन्होंने कहा, “लेकिन उन्होंने (उद्धव ने) मुख्यमंत्री की कुर्सी के लालच में बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को त्याग दिया। हम अब बालासाहेब की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं और वही इस सरकार का आधार है। हम कई काम कर रहे हैं, हमने कई बड़ी योजनाएं शुरू की हैं, उन सभी का मुख्य एजेंडा विकास है और यही शिवसेना का असली एजेंडा है और बालासाहेब ने यही सपना देखा था।” उन्होंने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे के संगठन को ”हिंदुत्व” पार्टी नहीं कहा जा सकता।
उद्धव ठाकरे ने वही किया जो बाला साहेब नहीं करना चाहते थे
शिंदे ने कहा, ‘‘उन्होंने बाला साहेब की विचारधारा को त्याग दिया है, उन्होंने सावरकर का अपमान करने वाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। वे अब सावरकर के लिए एक शब्द भी नहीं बोल सकते क्योंकि उनके होठ उनके सहयोगियों ने सिल दिये हैं। वे अब हिंदुत्व के बारे में बोलना भूल गए हैं। वे बालासाहेब का नारा, ‘गर्व से कहो, हम हिंदू हैं’ भूल गए हैं। वे अब बालासाहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ भी नहीं कहते हैं। उन्होंने हिंदुत्व के साथ-साथ बालासाहेब की विचारधारा को भी त्याग दिया है।” शिंदे ने कहा कि बालासाहेब हमेशा कांग्रेस के खिलाफ थे और वे हमेशा कहते थे कि वह कभी भी कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएंगे। उन्होंने कहा कि लेकिन उद्धव ठाकरे ने वही किया जो बाला साहेब नहीं करना चाहते थे।
आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना एक नया जुमला
उद्धव ठाकरे के उस बयान के बारे में पूछे जाने पर कि भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री और अब उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में तैयार करने का वादा किया था, शिंदे ने कहा कि यह एक नया “जुमला” है। उन्होंने कहा, ‘‘पहले उन्होंने (उद्धव ठाकरे) दावा किया कि अमित शाह ने उनसे कहा था कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में 2.5 साल मिलेंगे। बात बंद दरवाजे के पीछे हुई। यदि उन्हें वह 2.5 साल लेने थे, तो जब फडणवीस उन्हें एक बैठक के लिए फोन कर रहे थे, तो उन्हें फोन उठाना चाहिए था लेकिन उन्होंने 50 फोन ‘कॉल’ में से एक भी नहीं ली। इससे पता चलता है कि वह बाहर नहीं बैठना चाहते थे।
बालासाहेब महान सोच और विचारधारा वाले व्यक्ति…
यदि वह भाजपा के साथ रहते, तो उन्हें 2.5 साल बाद में मिलते, यदि ऐसा कोई वादा किया गया था, लेकिन वह पहले चाहते थे। चूंकि उनकी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, उन्होंने कांग्रेस और राकांपा (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) से हाथ मिलाया।” बालासाहेब और उद्धव ठाकरे, दोनों के साथ काम करने के अपने अनुभव पर शिंदे ने कहा, “बालासाहेब महान सोच और विचारधारा वाले महान व्यक्ति थे। वह ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ खड़े रहते थे। देश और राज्य के विकास के साथ-साथ हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए भी उनके पास एक महान दृष्टिकोण था।”
उद्धव उनसे पूरी तरह से उलट
शिंदे ने कहा, “उद्धव उनसे पूरी तरह से उलट हैं। वह केवल अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाने में रुचि रखते हैं, उन्हें पार्टी या पार्टी कार्यकर्ताओं से कोई लेना-देना नहीं है। शिवसेना का मुख्यमंत्री होने के बावजूद, शिवसेना पतन की ओर जा रही थी और विधायकों को निधि नहीं मिल रही थी। वे लोगों को क्या मुंह दिखाते?” उन्होंने कहा, “हर कोई चिंतित था। उनके मुख्यमंत्री होने के बावजूद पार्टी कार्यकर्ता जेल जा रहे थे। इस सब का क्या मतलब है? शिवसेना पूरी तरह से नीचे जा रही थी।” शिंदे ने कहा, ”उनके (उद्धव ठाकरे) विचार बालासाहेब से बिल्कुल अलग हैं।”

Sharing Is Caring:

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version