उमेश पाल हत्याकांड के बाद विपक्ष ने जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल किए तो उन्होंने विधानसभा में इसका जवाब दिया. सीएम योगी ने विधानसभा में कहा था, ‘माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा’.
हालांकि यह पहला मामला नहीं है. जब-जब प्रदेश में कानून व्यवस्था पर सवाल उठे और माफियाओं के हौसले बुलंद हुए तब-तब सख्त कार्रवाई देकर उदाहरण पेश किया गया. पिछले 6 सालों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के कार्यकाल में दुर्दांत अपराधियों और माफियाओं पर ताबड़तोड़ कार्रवाई हुईं. इन सालों में यूपी में 62 माफियाओं और उनके गैंग पर एक्शन लिया गया.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 406 अपराधियों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई हुई. इनके पास से 1577 करोड़ रुपए से अधिक की सम्पत्ति जब्त की गई. वहीं, 1098 करोड़ रुपए की सम्पत्ति ध्वस्त या मुक्त कराई गई. इनमें सबसे ताजा मामला है बाहुबली अतीक अहमद का.
जिसके बेटे असद का गुरुवार को एनकाउंटर हुआ.जानिए, हरिशंकर तिवारी से मुख्तार अंसारी तक योगी राज में नेस्तनाबूद हुए माफियाओं और कानून व्यवस्था को चुनौती देने वालों की कहानी. हरिशंकर तिवारी: योगी सरकार बनते ही छापेमारी शुरू हुई पूर्वांचल के माफियाओं की लिस्ट में एक बड़ा नाम रहा है हरिशंकर तिवारी. यह नाम अचानक से चर्चा में आया था 1985 में, जब चिल्लूपार विधानसभा सीट से ऐसे इंसान ने जीत हासिल की जो जेल में था. भारतीय राजनीति में यह ऐसा पहला मामला था, जब जेल से किसी इंसान ने जीत हासिल की हो.
हरिशंकर ने कांग्रेस प्रत्याशी मार्कंडेय नंद को 21 हजार से अधिक वोटों से हराया. बात 70 के दशक की है, जब समाजवादी नेता जय प्रकाश की क्रांति का असर पूरे देश पर हो रहा है. जेपी मूवमेंट का असर छात्र राजनीति पर पड़ा. उस दौर में हरिशंकर तिवारी गोरखपुर यूनिवर्सिटी एक बड़े छात्र नेता बनकर उभरे.
लेकिन उस समय दो गैंग बंटे हुए थे ब्राह्मण और ठाकुर. दोनों ही गैंग अपनी बादशाहत को कायम रखने के लिए आए दिन भिड़ जाते थे. इन गुटों के मुखिया थे हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह. दोनों का मकसद गोरखपुर में दबंगई को कायम रखना और सरकारी ठेकेदारी पर कब्जा करना था.
धीरे-धीरे हरिशंकर तिवारी की दबंगई बढ़ने के साथ रेलवे और शराब के ठेके के काराेबार में दबदबा बढ़ने लगा. दबदबे के साथ हत्या, हत्या के लिए साजिश रचने, किडनैपिंग, रंगदारी वसूलने समेत 26 से ज्यादा केस दर्ज हुए. योगी आदित्यनाथ ने जिस दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उसी के कुछ दिन बाद से ही असर दिखने लगा. शपथ ग्रहण के कुछ दिन बाद ही पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के घर पर छापेमारी हुई. अक्टूबर 2020 में बेटे और बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी और बहू रीता पर सीबीआई ने केस दर्ज किया.
बेटे पर बैंक फ्रॉड करने का मामला दर्ज हुआ और कई जगह छापेमारी हुई. मुख्तार अंसारी: विधायक की हत्या समेत 16 मुकदमे दर्ज हुए माफिया डाॅन मुख्तार अंसारी पर हत्या, वसूली, दंगा भड़काने, धोखाधड़ी और जमीन पर कब्जा करने समेत 52 आपराधिक मामले दर्ज हुए. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान कई मामलों में गवाहों के बयान ने पलटने और सरकारी वकील की दमदार पैरवी न होने के कारण इन्हें अदालत ने बरी कर दिया, लेकिन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत 16 मुकदमे अभी भी इन पर चल रहे हैं. मुख्तार ने 1996 में पहली बार बसपा के टिकट से मऊ विधानसभा से चुनाव लड़ा.
इसके बाद लगातार 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में मऊ से चुनाव जीता. आखिरी तीन चुनाव जेल में रहते लड़े. कहा जाता है कि 1985 से गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट 2002 मं भाजपा के कृष्णानंद राय ने छीन ली. जीत हासिल करने के 3 साल बाद उनकी हत्या हो गई. जिस समय हत्या हुई उस समय मुख्तार जेल में बंद था, लेकिन सीधे तौर पर मामला 17 साल पुरानी सीट से जुड़ा था और अंसारी की नाराजगी जगजाहिर थी, इसलिए हत्या के बाद जेल में बंद अंसारी का नाम इस हत्याकांड में जोड़ा गया.
भाजपा की मौजूदा सरकार में मंत्री और गाजीपुर से सांसद मनोज सिंह ने इस मामले में मुख्तार के खिलाफ गवाही दी. हालांकि इस मामले में गवाहों के मुकरने के बाद अंसारी जेल से छूट गया, लेकिन उसका गैंग एक्टिव रहा. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद अंसारी पर शिकंजा कसना शुरू किया गया. प्रदेश सरकार 15 मामलों में मुख्तार अंसार को सजा दिलाने की कोशिश में है.
योगी सरकार पहले ही अंसारी के गैंग की 192 करोड़ रुपए की सम्पत्ति को या तो जब्त कर चुकी है या ध्वस्त कर चुकी है. इतना ही नहीं, योगी सरकार ने अंसारी के 75 गुर्गों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की. विजय मिश्रा: 5 बार विधायक रहे बाहुबली को 5 साल की जेल भदोही की ज्ञानपुर विधानसभा सीट से 4 बार विधायक रहे विजय मिश्रा भी योगी सरकार के निशाने पर रहे. पूर्वांचल के बाहुबली विजय मिश्रा तीन बार सपा और एक बार निषाद पार्टी से विधायक रहे हैं.राजनीतिक सफर के दौरान विजय मिश्रा पर कई आरोप लगे और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में आपराधिक मामलों में एफआईआर भी दर्ज की गई. मार्च में प्रयागराज की विशेष न्यायालय ने विजय मिश्रा को 5 साल कारावास की सजा का आदेश जारी किया.
विजय पर आर्म्स एक्ट के मामले प्रयागराज के फूलपुर थाने में केस दर्ज था. दरअसल, विजय मिश्रा पर एक चुनावी सभा के दौरान सरकारी गनर के हथियार से फायरिंग करने का आरोप लगा था. इस मामले में उन्हें 5 साल की सजा सुनाई थी. विकास दुबे: 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद एनकाउंटर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में ही कानपुर के अपराधी विकास दुबे का सफाया हुआ.
विकास उत्तर प्रदेश का दुर्दांत अपराधी था और उसके नाम 5 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया गया था. रियल एस्टेट से करियर की शुरुआत करने वाले विकास ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. साल 2000 में उसने जिला पंचायत चुनाव में शिवराजपुर से उस समय सीट जीती जब वो जेल में था. चुनाव से पहले लूट और हत्या करना ही उसका पेशा था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेताओं से उसकी करीबी बढ़ने लगी.
हौसले इतने बुलंद हो गए थे कि उसके गुर्गों ने गोली मारकर 8 पुलिस कर्मचारियों की हत्या कर दी. इसके बाद से ही वो वांटेड क्रिमिनल के तौर पर जाना जाने लगा. पुलिस की हत्या के आरोप में 13 अगस्त 2021 को कानपुर से 17 किलोमीटर दूर भौती में सुबह उसका एनकाउंटर हुआ. आजम खान: योगी सरकार ने जौहर ट्रस्ट की जमीन वापस ली, 80 से ज्यादा मामले दर्ज भड़काऊ भाषण देने और जौहर ट्रस्ट की जमीन की खरीद में हेरफेर करने वाले समाजवादी पार्टी के विधायक आजम खान पर भी सीएम योगी सख्त रहे हैं.
आजम पर कुल 80 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. आजम को पहले भड़काऊ भाषण मामले में रामपुर कोर्ट ने दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनाई. इसके बाद जौहर ट्रस्ट के लिए खरीदी गई जमीन में नियमों का उल्लंघन करने पर योगी सरकार ने कार्रवाई की और 70 हेक्टेयर जमीन आजम से वापस ली. इसी साल फरवरी में छजलैट मामले में आजम खान और बेटे विधायक अब्दुल्लादोषी करार देते हुए 2-2 साल की सजा सुनाई गई. दरअसल उत्तर प्रदेश के छजलैट में आजम खान की कार को चेकिंग के लिए रोका गया था, जिसके बाद उनके समर्थक भड़क गए थे.
इस मामले में कइयों को आरोपी बनाया गया. सरकारी काम में बाधा डालने और भीड़ को उकसाने के आरोप में कार्रवाई की गई थी. अतीक अहमद: 102 मुकदमे और आजीवन कारावास अतीक के पिता हाजी फिरोज तांगा चलाते थे और आपराधिक प्रवृत्ति के इंसान थे. अतीक पिता के नक्शे पर चला और मात्र 18 साल की उम्र में 1983 में पहली एफआईआर दर्ज हुई. यहीं से अतीक का हौसलाा बढ़ने लगा और गुनाहों की लिस्ट बढ़ती गई. 1989 में राजनीतिक सफर शुरू किया और इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता भी.
अतीक ने लगातार कई चुनाव जीते. राजनीति के साथ अपराध की दुनिया में भी रुतबा बढ़ने लगा.2007 में बसपा की सरकार बनने पर मायावती ने अतीक पर शिकंजा कसा और एक-एक करके 10 मुकदमे दर्ज कराए. इस सख्ती के बाद अतीक फरार हो गया. दबाव बढ़ता देखकर अतीक ने सरेंडर कर दिया.
2014 में उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनने पर अतीक को जमानत मिली और श्रावस्ती से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया. 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने पर योगी सरकार ने अतीक पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. व्यापारी की पिटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अतीक को दूसरे राज्य की जेल में भेजने का आदेश दिया. उसे अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया था.
तब से वो वहीं है. इसके बाद उमेश पाल हत्याकांड मामले में फूलपूर से सांसद रहे अतीक अहमद को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. अतीक पर धमकी, हत्या की कोशिश और अपहरण समेत 102 मामले दर्ज हुए. 3 बार गैंगस्टर एक्ट लगा. अतीक को उत्तर प्रदेश की अलग-अलग जेलों में रखा गया. जेल में भी उसने दरबार लगाना जारी रखा. अब गुरुवार को उसके बेटे असद को यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया.