जातीय गणना के बाद अब OBC, EBC वोटबैंक पर फोकस, RJD-JDU ने बनाया मेगा प्लान
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बिहार में जातीय गणना रिपोर्ट जारी होने के बाद अब सत्तारूढ़ लालू यादव की पार्टी आरजेडी और सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का फोकस पिछड़े वर्गों और अत्यंत पिछड़े वर्गों (ईबीसी) पर है।

जिसके लिए अब दोनों पार्टियां जाति डेटा के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए संपर्क अभियान शुरु करेंगी। बिहार की सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगी। जिसके लिए राजद ने टीमों का गठन और तमाम इकाईयों को एक्टिव करने की कवायज तेज कर दी है। वहीं जदयू पहले से ही ‘कर्पूरी पे चर्चा’ कार्यक्रम के जरिए जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर सार्वजनिक पहुंच तेज कर दी है। राजद और जेडीयू दोनों के लिए ओबीसी और ईबीसी अहम वोटबैंक हैं।

राजद के वरिष्ठ नेता और महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा कि पार्टी अगले कुछ हफ्तों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में टीमें भेजने पर काम कर रही है, जिन्हें जाति डेटा सर्वेक्षण के बारे में ईबीसी, ओबीसी, अनुसूचित जाति समूहों सहित सभी समुदायों के लोगों के साथ बातचीत करने का काम सौंपा जाएगा। उन्होंने कहा, हम एक टीम भेजेंगे जो लोगों को जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार राज्य के लोगों की वास्तविक स्थिति बताएगी। हम इस पर काम कर रहे हैं। उन्होने कहा कि राजद का ईबीसी सेल पहले से ही राज्य भर में ब्लॉक और जिला स्तर पर छोटी बैठकें कर रहा है, जहां जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट, आरक्षण के विभिन्न पहलुओं और अन्य पार्टी के एजेंडे पर बात की जा रही है।

सूत्रों के मुताबिक लालू की पार्टी राजद ने पहले ही ओबीसी और ईबीसी समूहों के नेताओं को राज्य के विभिन्न हिस्सों में अपने समुदाय, जाति समूहों तक पहुंचने का काम सौंपा है, खासकर उन इलाकों में जहां ईबीसी, ओबीसी की बड़ी मतदाता आबादी है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि जाति सर्वेक्षण के महत्व और पिछड़ी जाति समूहों के संख्यात्मक डेटा के आधार पर आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में लोगों तक पहुंचने के लिए ग्राम पंचायत के मुखियाओं को शामिल करने की भी योजना है।

राजद के एक नेता ने बताया कि हर मंडल को चार भागों में विभाजित किया गया है और नेता ब्लॉक से पंचायत स्तर तक लोगों के बीच जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के बारे में बात करने के लिए अपने निर्धारित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों जैसे ईबीसी प्रकोष्ठ, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ को भी इस काम के लिए सक्रिय किया गया है।

जदयू भी इसी तरह की कवायद कर रहा है। जेडीयू एमएलसी रवींद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि 7 टीमों को जनसंपर्क का काम सौंपा गया है। हमने अब तक राज्य भर में 63 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया है और सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों को छूने का लक्ष्य है। हमारे कार्यक्रम का सार लोगों को यह बताना है कि सरकार ने जाति सर्वेक्षण क्यों कराया और यह गरीबों और वंचित वर्गों के उत्थान में कैसे मदद करेगा। उन्होने ने कहा कि वक्ताओं के समूह में ईबीसी और पार्टी के नेता शामिल हैं। ओबीसी समूहों में मौजूदा सांसद, विधायक, मंत्री और पूर्व विधायक शामिल हैं। शुरुआत में, हम तमाम पंचायत और दूर-दराज के इलाकों में शनिवार और रविवार को बैठकें कर रहे थे। अब, हम पूरे राज्य को कवर करने करने की योजना है।

आपको बता दें 2 अक्टूबर को जारी जाति आधार सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, ईबीसी और ओबीसी की हिस्सेदारी 63.13% है जबकि गैर आरक्षित श्रेणी की हिस्सेदारी 15.52% है। अनुसूचित जाति समुदाय की हिस्सेदारी 19.65% है जबकि अनुसूचित जनजाति समुदाय की हिस्सेदारी 1.68% है। जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के जारी होने से राज्य में पहले से ही राजनीतिक मंथन शुरू हो गया है, जिसमें राजद, वाम दलों सहित जीए घटक शामिल हैं, जो समाजवादी नेताओं के पुराने नारे “जिसकी जितनी आबादी, उसकी उनकी हिस्सेदारी” के आधार पर पिछड़े वर्गों के लिए उच्च आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, महागठबंधन के नेताओं को जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर जातिगत भावनाओं को जगाकर 2024 के संसदीय चुनाव से पहले पिछड़े वर्गों को एकजुट करने और ओबीसी, ईबीसी वोट बैंक को मजबूत करने का अवसर भी दिख रहा है। जदयू, राजद और वामपंथी दलों ने भी देशव्यापी जाति जनगणना की मांग शुरू कर दी है।

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