गुरुवार के दिन करें ये अचूक उपाय, कुंडली का गुरु होगा मजबूत
Sharing Is Caring:

हर व्यक्ति के जीवन में ग्रह नक्षत्र और कुंडली विशेष महत्व रखती है। ज्योतिष अनुसार अगर कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है तो जातक को इसके शुभ परिणाम प्राप्त होते है।

लेकिन अगर कुंडली का कोई भी ग्रह कमजोर या फिर अशुभ स्थिति में होता है तो जातक को अपने जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है ऐसे में अगर आपकी कुंडली का गुरु कमजोर है या फिर अशुभ फल प्रदान कर रहा है तो ऐसे में आप गुरुवार के दिन देवी गुरु बृहस्पति और केले के पेड़ की विधिवत पूजा करें।

गुड़ चने का भोग लगाएं और हल्दी का तिलक करें इसके साथ ही भगवान बृहस्पति व गुरु ग्रह का ध्यान करते हुए श्री गुरु स्तोत्र का संपूर्ण पाठ करें मान्यता है कि इस उपाय को अगर लगातार सात गुरुवार किया जाए तो कुंडली का गुरु मजबूत होता है और शुभ फल प्रदान करता है जिससे जातक को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। तो आज हम आपके लिए लेकर आए है श्री गुरुवार स्तोत्र पाठ।

श्री गुरु स्तोत्र

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशालाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥४॥
चिद्रूपेण परिव्याप्तं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५॥
सर्वश्रुतिशिरोरत्नसमुद्भासितमूर्तये ।
वेदान्ताम्बूजसूर्याय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥
चैतन्यः शाश्वतः शान्तो व्योमातीतोनिरञ्जनः ।


बिन्दूनादकलातीतस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥७॥
ज्ञानशक्तिसमारूढस्तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मेन्धनविदाहिने ।
आत्मञ्जानाग्निदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥९॥
शोषणं भवसिन्धोश्च प्रापणं सारसम्पदः ।
यस्य पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१०॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥११॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१२॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१३॥
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुंतं नमामि ॥१४॥

Sharing Is Caring:

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *