बिहार की कानून-व्यवस्था सवालों के घेरे में है। रामनवमी और चैती दुर्गा के जुलूस के दौरान पहले सासाराम, फिर बिहारशरीफ और बाद में गया में आगजनी और हिंसा की वारदातों ने बीजेपी को नीतीश कुमार की सरकार और बिहार पुलिस पर सवाल उठाने का भरपूर मौका दिया है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बिहार पहुंचे तो इस माहौल को महागठबंधन और नीतीश पर हमले के अवसर में बदलने में कोई रियायत नहीं दी। लेकिन इस बीच एक चौंकाने वाली चीज दिखी है।
मार्च के आखिरी दो हफ्ते से अब तक बिहार के अलग-अलग जिलों में रंगदारी मांगने के 6 बड़े मामले दर्ज हुए हैं। दो मामले तो एक ही इलाके के हैं। रंगदारी मांगने के मामलों में आई तेजी से बिहार में 90 का वो दशक याद आने लगा है जब पैसे वाले व्यापारी, डॉक्टर, इंजीनियर और सरकारी अधिकारी उठा लिए जाते थे। कानून की भाषा में उठाने को अपहरण भी कहते हैं।
अपहरण को उद्योग जैसा बना देने वाले उस दौर में जो उठाए जाते थे, वो पैसा देकर लौट आते थे तो भी पुलिस उनको बिठाकर मीडिया से कहती थी कि दबिश के कारण किडनैपर्स ने छोड़ दिया। पैसा देकर भी लौटा आदमी चुपचाप पुलिस की कहानी में खुद को सेट कर लेता था क्योंकि उसका सच पुलिस और क्रिमिनल दोनों के लिए मुश्किलें पैदा करता।
21 मार्च को बेगूसराय में नगर निगम मेयर का चुनाव लड़ चुकीं सोनी कुमारी के घर पर हमला करके अपराधियों ने 50 लाख की रंगदारी मांग ली। 25 मार्च को सासाराम में बालू घाट के संचालक से पिस्तौल की नोंक पर रंगदारी मांगी गई। 28 मार्च को नवादा में चिट्ठी के जरिए 50 लाख की रंगदारी नहीं देने पर तिलैया रेलवे जंक्शन के बड़ा बाबू और गेटमैन को मार डालने की धमकी दी गई।
28 मार्च को ही मोतिहारी के एक बड़े डॉक्टर को लेटर भेजकर 2 करोड़ की रंगदारी दो दिन में नहीं देने पर जान से मार देने की धमकी दी गई। 1 अप्रैल को बेतिया जिले के नरकटियागंज इलाके में बड़े चावल व्यापारी से 1 करोड़ रुपए रंगदारी फोन करके मांगी गई। 2 अप्रैल को नरकटियागंज के ही आलू व्यापारी को फोन करके 20 लाख रुपए मांगा गया।
इन 6 मामलों में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं और पुलिस का दावा है कि केस क्रैक कर लिया गया है। पुलिस का काम भी यही है। केस हो तो क्रैक किया जाए। लेकिन 13 दिन के अंदर बिहार के अलग-अलग जिलों में रंगदारी के 6 मामले इतना तो बता ही रहे हैं कि बिहार पुलिस का इकबाल डोल रहा है। क्रिमिनल में वर्दी का खौफ कम हो रहा है।
आरएस भट्टी के बिहार पुलिस का डीजीपी बनने के बाद अनुमान लगाया गया था कि संगठित अपराध कम होगा, आपराधिक गैंग का मनोबल टूटेगा लेकिन रंगदारी की एक के बाद एक घटना हालात के कुछ और ही होने का इशारा कर रहे हैं।