राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनने से उत्तर प्रदेश कांग्रेस की टीम का कॉन्फिडेंस काफी बढ़ गया है। इतना आत्मविश्वास कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच यूपी कांग्रेस खड़ी हो गई है।23 जून को पटना में नीतीश कुमार की मेजबानी में विपक्षी एकता मीटिंग में दोनों के शामिल होने के बाद सपा और कांग्रेस के बीच दोबारा गठबंधन की बातें उछल रही हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए यूपी कांग्रेस की पहली मीटिंग में सारे नेताओं ने एक स्वर से कहा कि चाहे जिससे भी गठबंधन कर लें लेकिन अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (एसपी) से एलायंस नहीं करें।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को यूपीसीसी चेयरमैन बृजलाल खाबरी ने 2024 के चुनाव के लिए रणनीति बनाने की बैठक बुलाई थी जिसमें शामिल नेताओं की भावना यही रही कि सपा से गठबंधन नहीं किया जाए। प्रदेश अध्यक्ष से जब पूछा गया कि यूपी के नेता गठबंधन के बदले क्या अकेले लड़ना चाहते हैं तो खाबरी ने कहा- “ऐसा नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश में सपा को छोड़कर किसी से भी।” उन्होंने कहा कि सपा के साथ 2024 में गठबंधन जमीनी स्तर पर व्यावहारिक नहीं होगा।प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने कहा- “पार्टी नेता कह रहे हैं कि सपा ना तो हिंदू का और ना ही मुस्लिम का अच्छा वोट शेयर जुटा सकती है। 2022 में जिन लोगों ने उनको वोट दिया उन्होंने देखा कि वो बीजेपी से जीत नहीं सकी। पार्टी के नेताओं महसूस कर रहे हैं कि आम लोगों की भावना को देखते हुए सपा से दूरी बनाकर चलना ही कांग्रेस के हित में है। यहां तक कि 2022 में मुसलमानों ने भी देखा कि अखिलेश यादव ने अपनी सभाओं में मुसलमान नेताओं को तवज्जो नहीं दी। उनका वोट बैंक खिसक रहा है।”
रणनीति बैठक में शामिल कुछ नेताओं ने कहा कि बुजुर्ग कार्यकर्ताओं के अलावा पार्टी का एक बड़ा धड़ा मानता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन के कारण यूपी में कांग्रेस को फिर से जिंदा करने की कोशिश को धक्का लगा था। 2017 के विधानसभा चुनाव को प्रैक्टिकल एक्सपेरिमेंट बताकर खाबरी कहते हैं कि प्रयोग असफल होते हैं तो सवाल पैदा होता है कि भविष्य में ऐसा फैसला करना चाहिए या नहीं।खाबरी ने कहा कि जनता की नजर में यह बात है कि सपा नेतृत्व ने सीएए और एनआरसी विरोध में कांग्रेस का साथ नहीं दिया था। खाबरी ने कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने यूपी के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है और यह वोट में बदला जा सकता है। उन्होंने कहा कि पार्टी अपने दलित-अल्पसंख्यक बेस को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
विपक्षी दलों की बैठक में पटना जाने से पहले अखिलेश यादव ने मायावती की तरफ फिर से हाथ बढ़ाते हुए कहा था कि बड़े दलों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए। तब माना गया था कि अखिलेश बसपा के साथ गठबंधन की तरफ बढ़ रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस और बसपा दोनों ही दलों में काफी नेता हैं जो मानते हैं कि दोनों को गठबंधन करना चाहिए। दोनों दलों के नेताओं की प्राथमिकता में सपा नहीं है। बसपा प्रमुख मायावती इन दिनों कांग्रेस को लेकर थोड़ी नरम भी हैं। जिन राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं उनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान में बसपा को विधानसभा चुनावों में पहले भी सफलता मिलती रही है।बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को विपक्षी एकता की दूसरे राउंड की बैठक है जिसके बाद बीजेपी विरोधी मोर्चेबंदी की तस्वीर और साफ होगी। उत्तर प्रदेश को लेकर कांग्रेस के मन में क्या है, अखिलेश यादव के मन में कांग्रेस को लेकर क्या है और दोनों के मन में मायावती की बसपा को लेकर क्या है, उत्तर प्रदेश का विपक्षी गठबंधन इस पर निर्भर करेगा।