कर्नाटक में भाजपा बदल देगी रिवाज या कांग्रेस पाएगी ताज, कितनी ताकत JDS के पास
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कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनाव प्रचार आज शाम थम जाएंगे। अब बुधवार को 224 विधानसभा सीटों वाले प्रदेश में वोटिंग होगी। प्रदेश में जबर्दस्त सियासी घमासान मचा हुआ है। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

वहीं, बजरंग बली की एंट्री ने यहां के चुनावी समीकरण को और ज्यादा दिलचस्प बना दिया है। कुछ चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। वहीं, जेडीएस अगर सत्ता पर काबिज नहीं हो पाती है तो कम से कम किंगमेकर की भूमिका निभाने की आशा पाले हुए है। वैसे अगर भाजपा यहां पर सत्ता में वापसी करती है तो 1985 के बाद ऐसा करने वाली वह महज दूसरी पार्टी होगी। आइए जानते हैं आखिर कर्नाटक में क्या हैं सियासी हाल और भाजपा, कांग्रेस व जेडीएस के बीच कितनी है टक्कर…

भाजपा को एक बार फिर मोदी से आस
वैसे तो कर्नाटक को लेकर हुए कुछ ओपिनियन पोल्स में कांग्रेस को भाजपा से बढ़त लेते हुए बताया गया है। लेकिन चुनाव प्रचार में पीएम मोदी की एंट्री होती ही यहां पर भाजपा की उम्मीदें एक बार फिर से लहलहा उठी हैं। प्रधानमंत्री मोदी बीते कुछ दिनों से कर्नाटक में पूरी तरह से सक्रिय हैं। उन्होंने पूरे प्रदेश की 25 से ज्यादा विधानसभाओं में 20 से ज्यादा रैलियां की हैं। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा अपने ऊपर की गई टिप्पणी को भुनाने की कोशिश की है। साथ ही कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल को बैन करने के ऐलान पर भी हल्ला बोला। इसके बाद वह विभिन्न रैलियों की शुरुआत में बजरंग बली की जय बोलते हुए नजर आए। इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी कर्नाटक चुनाव को लेकर खासे सक्रिय नजर आए। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि मोदी और शाह का जादू कर्नाटक में कितना चल पाता है।

कांग्रेस को भी है उम्मीद
दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी है जिसे उम्मीद है कि प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर उसके पक्ष में जाएगी। आखिरी क्षणों में प्रधानमंत्री मोदी के हमलावर रुख के बावजूद कांग्रेस काफी ज्यादा कांफिडेंट है। कांग्रेस के इस विश्वास के पीछे उसकी पांच गारंटी योजनाएं हैं, जिसका उसने चुनाव से पूर्व ऐलान किया है। पार्टी को भरोसा है कि इन वादों के दम पर वह बढ़ती महंगाई के खिलाफ लोगों के गुस्से को भुनाने में कामयाब रहेगी। वहीं, करीब महीने भर के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उसने पूरा ध्यान स्थानीय मुद्दों पर ही लगाया। इस दौरान कांग्रेस ने बसवराज बोम्मई की सरकार के भ्रष्टाचार पर जमकर निशाना साधा है। हालांकि प्रचार के आखिरी चरणों पर पीएम मोदी पर टिप्पणी और बजरंग दल पर बैन की बात उसका खेल बिगाड़ सकती है।

जेडीएस की राह कितनी आसान?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में तीसरा बड़ा खिलाड़ी जेडीएस है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी की इस पार्टी को आशा है कि वह चुनाव में किंगमेकर की भूमिका निभा सकता है। दो राष्ट्रीय दलों के खिलाफ लड़ाई के लिए उसने पूर्व तैयारी भी खूब की है। हालांकि आखिरी चरण के चुनाव प्रचार के दौरान एचडी देवगौड़ा और कुमारस्वामी की बीमारी ने उन्हें थोड़ा नुकसान जरूर पहुंचाया है। इसके अलावा जेडीएस उत्तरी कर्नाटक में पार्टी अच्छी तरह से फोकस नहीं कर पाई है, जहां उसे सबसे ज्यादा उम्मीद थी। खास बात यह है कि इस क्षेत्रीय क्षत्रप ने भाजपा और कांग्रेस से दूरी बनाते हुए खुद को स्थानीय मुद्दों, जैसे किसानों की बेहतरी, गरीबी, क्षेत्रीय विकास वगैरह पर केंद्रित रखा है।

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