कभी पक्के दोस्त हुआ करते थे इजरायल और ईरान, फिर कैसे बन गए जानी दुश्मन; आ गई युद्ध की नौबत
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इजरायल और ईरान लंबे समय से प्रॉक्सी वॉर लड़ रहे हैं। वहीं अब स्थिति और गंभीर हो गई है और दोनों देश आमने-सामने की लड़ाई के लिए तैयार हैं। कह सकते हैं कि दुनिया एक महायुद्ध के मुहाने पर खड़ी है।रिपोर्ट्स के मुताबिक ईरान इजरायल पर हमले का पूरा मूड बना चुका है औरर उसने दर्जनों मिसाइलें तैयार कर ली हैं। वहीं अमेरिका कोशिश कर रहा है कि किसी तरह सऊदी अरब और चीन बातचीत करके युद्ध को रोकने का प्रयास करें। अमेरिका और भारत ने अपने नागरिकों को इजरायल और ईरान ना जाने की सलाह दी है।

गाजा में हमास के खिलाफ शुरू हुए युद्ध के दौरान भी ईरान खुलकर हमास का समर्थन करता रहा है। इसी को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। वहीं जब इजरायल ने सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला कर दिया तो स्थिति गंभीर हो गई। दोनों देश युद्ध के लिए तैयार हो गए। अगर इतिहास में झांकें तो इजरायल और ईरान हमेशा दुश्मन ही नहीं थे। ईरान में 1978 की इस्लामिक क्रांति से पहले दोनों पक्के दोस्त हुआ करते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद ईरान ही दूसरा ऐसे इस्लामिक देश था जिसने सबसे पहले इजरायल को मान्यता दी थी। तुर्की के बाद 1948 में ईरान ने इजरायल को मान्यता दे दी थी।

ईरान का कहना है कि हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी संगठनों को ईरान का समर्थन मिला हुआ है इसलिए वह ईरान पर हमले करवाता रहता है। ईरान और इजरायल ने भले ही कभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोस्ती का इजहार ना किया हो लेकिन 1978 से पहले दोनों देश काफी नजदीक थे। बात 1953 की है जब अमेरिका ने खुफिया ऑपरेशन के जरिए इजरायल की सरकार गिराने की कोशिश की। ईरान की सेना का ही जनरल फजलुल्लाह जाहेदी इस काम में शामिल था। हालांकि तख्तापलट से पहले ही राष्ट्रपति मोहम्मद मोसादेग को इसकी भनक लग गई और वह अलर्ट हो गए। इसके बाद बहुत सारे लोगों कि गिरफ्तारी हुई और अमेरिका का प्लान फेल हो गया।

हालांकि दूसरे ऑपरेशन में अमेरिकी एजेंसी सीआईए सफल हो गई और ईरान में राजशाही की मांग जोर पकड़ने लगी। इसके बाद मोहम्मद मोसादेग को इस्तीफा देना पड़ा और ईरान में राजशाही सरकार आ गई। अब ईरान में जो सरकार थी उसके भी इजराय के साथ अच्छे संबंध थे। इसके बाद दोनों देश काफी करीब आ गए। यहां तक कि आपस में युद्धाभ्यास और ट्रेनिंग के कार्यक्रम भी चलते थे। यह सिलसिला 1979 तक चलता रहा।एक बार ईरान के राजा शाह रजा पहलवी ने एक पार्टी में अमेरिका, सोवियत संघ के नेताओं को बुलाया। तब तक आयतुल्लाह खुमैनी की पकड़ राजनीती में अच्छी हो चुकी थी। खुमैनी को यह पार्टी अच्छी नहीं लगी। उसने ईरान में राजा के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। बाद में यही आंदोलन ईरान की इस्लामिक क्रांति बन गई। इस आंदोलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग जुड़ गए कि राजा को देश छोड़कर भागना पड़ गया। ईरान में जब इस्लामिक सरकार बन गई और शरिया कानून लागू हो गया तो ईरान ने इजरायल से भी नाता तोड़ लिया। दुश्मनी ऐसी हुई कि दोनों देशों ने यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया और दूतावास बंद कर दिए। बता दें कि 1978 में भी ईरान में लगभग 1 लाख यहूदी थे लेकिन खुमैनी ने ईरान को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था।

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