लोकसभा चुनाव में दस साल बाद किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण यूपी से दिल्ली तक गहमागहमी बढ़ी हुई है। आगे की रणनीति बनाने के लिए भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस-सपा वाले इंडिया गठबंधन ने राष्ट्रीय राजधानी में अलग अलग बैठकें बुलाई हैं।
इस बीच एनडीए बैठक में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओपी राजभर को नहीं बुलाया गया है। जबकि लोकसभा चुनाव से पहले हुई एनडीए की बैठक में आकर्षण का केंद्र ओपी राजभर ही थे। उन्हें बैठक से कुछ समय पहले ही एनडीए में दोबारा शामिल किया गया था। इसे लेकर ओपी राजभर का बयान भी आया है। एनडीए की बैठक प्रधानमंत्री मोदी के आवास और इंडिया गठबंधन की बैठक कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हो रही है।
एक दिन पहले ही बेटे अरविंद राजभर को घोसी लोकसभा सीट से मिली करारी हार के बाद एनडीए की बैठक में नहीं बुलाना ओपी राजभर के लिए दो दिन में दूसरा बड़ा झटका माना जा रहा है। इसे ओपी राजभर से किनारा करने के नजरिए से भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि जिस वजह से भाजपा में ही तमाम विरोधों के बाद भी ओपी राजभर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया और एमएलसी की सीट भी दी गई, वह मंशा पूरी नहीं सकी है। उल्टा सुभासपा के कारण भाजपा के कई वोटर नाराज भी हुए हैं। भाजपा के अलग होने के बाद ओपी राजभर लगातार पीएम मोदी और सीएम योगी को निशाने पर लेते थे। इस दौरान कई बार मोदी-योगी को लेकर आपत्तिजनक बातें भी उन्होंने की थी। इससे भी नाराजगी थी।
अब दिल्ली की बैठक में नहीं बुलाने के सवाल पर ओपी राजभर ने एएनआई से बातचीत में कहा कि उन्हें बैठक की जानकारी नहीं दी गई। कहा कि मुझे बैठक के बारे में सूचित नहीं किया गया था। इसलिए, मैं उसमें शामिल नहीं होने जा रहा हूं। उनके बेटे को घोसी से मिली हार और यूपी में एनडीए के खराब प्रदर्शन पर कहा कि सपा और कांग्रेस ने संविधान खतरे में कहकर लोगों को भ्रमित करने का काम किया है। कहा कि सपा और कांग्रेस ने बार-बार यह कहकर इसे मुद्दा बनाया और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का वोट शेयर भी खा लिया।
यूपी में भाजपा 63 से घटकर 33 सीटों पर आ गई है। उसके सहयोगियों सुभासपा के ओपी राजभर के साथ ही निषाद पार्टी के संजय निषाद और अपना दल एस की प्रमुख अनुप्रिया पटेल को भी झटका लगा है। भाजपा की सीटें 63 से घटकर 33 हो गई हैं। भाजपा अयोध्या की सीट फैजाबाद, प्रयागराज तक हार गई है। वाराणसी में पीएम मोदी की जीत का अंतर तो अमेठी में कांग्रेस के केएल शर्मा की जीत के अंतर से भी कम हो गया है।
वहीं रायबरेली में राहुल गांधी ने बड़े मार्जिन से जीत हासिल की है। यूपी में भाजपा की घटी सीटों ने ही दिल्ली में पूर्ण बहुमत से रोक दिया है। 2019 में भाजपा ने 303 और 2014 में 282 सीटें जीती थी। इस बार भाजपा 240 पाकर 33 सीटों से बहुमत से अटक गई है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने 2019 में 52 और 2014 में 44 की तुलना में इस बार 99 सीटें जीतीं हैं। इंडिया गठबंधन ने कड़ी प्रतिस्पर्धा पेश करते हुए और एग्जिट पोल के सभी पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए 230 का आंकड़ा पार कर लिया है।