दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को दिल्ली के एलजी वी.के. सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दोषी करार दिया है।
ये लड़ाई दो दशक पुरानी है जब सक्सेना खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष थे।
मानहानि का मामला साल 2000 में शुरू हुआ। उस समय पाटकर ने कुछ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था, जिसके बारे में उनका दावा था कि वे विज्ञापन उनके और एनबीए के लिए अपमानजनक हैं।
सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ, नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख भी थे।
जवाब में, सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ दो मानहानि के मामले दायर किए – एक टेलीविजन कार्यक्रम के दौरान उनके बारे में की गई कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर, और दूसरा पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस स्टेटमेंट को लेकर।
दिल्ली के साकेत कोर्ट के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने कहा कि पाटकर ने दावा किया कि शिकायतकर्ता ने मालेगांव का दौरा किया था, एनबीए की प्रशंसा की थी, 40,000 रुपये का चेक जारी किया था, जो लाल भाई समूह से आया था। साथ ही कहा था कि वह कायर हैं, देशभक्त नहीं।
मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा, “आरोपी ने इस दावे को प्रकाशित किया इससे याचिकाकर्ता को नुकसान पहुंचाने के उसके इरादे का पता चलता है।”
इस मामले में वकील गजिंदर कुमार, किरण जय, चंद्र शेखर, दृष्टि और सौम्या आर्य एलजी की ओर से पेश हुए, जबकि वकील श्रीदेवी पन्निकर ने अदालत में पाटकर का पक्ष रखा।
न्यायाधीश ने आदेश पारित करते समय कुछ टिप्पणियां भी की हैं।
मजिस्ट्रेट शर्मा ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी प्रतिष्ठा बड़ी चीज है। यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों दोनों को प्रभावित करती है और समाज में किसी भी व्यक्ति की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।
जज ने कहा कि पाटकर के एलजी को कायर बताने वाले बयान और ये आरोप कि वो हवाला लेनदेन में संलिप्त थे, न केवल मानहानि का नुकसान है, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने वाले हैं।
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हाथों में गिरवी रख रहे हैं, उनकी ईमानदारी पर सीधा हमला था।”
फैसले के अनुसार, पाटकर ने अपने दावों के पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए।
अदालत के आदेश में कहा गया, “सारे सबूत और गवाहों को देखने के बाद ये कहा जा सकता है उनकी प्रतिष्ठा को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा है।”
मजिस्ट्रेट शर्मा के फैसले से साफ है कि पाटकर ने जानबूझ कर ये हरकतें की थीं जो दुर्भावनापूर्ण थीं। इसका मकसद शिकायतकर्ता (एलजी) को बदनाम करना था।
जज ने कहा, “रखे गए साक्ष्यों के मूल्यांकन से बिना किसी संदेह के यह साबित होता है कि अभियुक्तों ने इस इरादे और जानकारी के साथ आरोप प्रकाशित किए कि वे शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाए। इसलिए, आईपीसी की धारा 500 के तहत उन्हें इसके लिए दोषी ठहराया जाता है।”