अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में अब बस सालभर का ही समय शेष है। राहुल गांधी की सांसदी जाने के बहाने विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में है, लेकिन अब तक कोई भी अंतिम फैसला नहीं हो सका है।
सीटों के हिसाब से सबसे बड़े राज्य यूपी में अखिलेश यादव अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। अखिलेश 2014 के बाद से चार बड़े चुनाव हार चुके हैं, जिसमें दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव शामिल हैं। ऐसे में अब वे (मुस्लिम+यादव) के अलावा दलित और पिछड़ों को अपने साथ लाने की कवायद में लग गए। बीते दिन रायबरेली में अखिलेश ने बसपा संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करके साफ संकेत दे दिए कि भविष्य में उनका फोकस मायावती से छिटके दलित वोटबैंक पर होने वाला है। अखिलेश एक तीर से दो निशाने (बीजेपी-बसपा) साधने की कोशिश में हैं।
मायावती के वोटबैंक के सहारे बीजेपी को पटखनी देने की तैयारी!
पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि मायावती पहले की तरह हमलावर नहीं रहीं। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मायावती के मुकाबले अखिलेश ज्यादा सक्रिय दिखाई दिए। उन्होंने प्रदेशभर का दौरा किया, साथ ही बीजेपी की तरह ही रणनीति बनाते हुए छोटे-छोटे दलों से गठबंधन किया। मायावती का वोटबैंक 2014 के बाद से ही छिटक रहा है। कभी लगभग एकमुश्त बसपा की ओर जाने वाले दलित-पिछड़े वोटों में भाजपा ने सेंधमारी कर ली, जिससे मायावती को काफी नुकसान उठाना पड़ा। अब इस वोटबैंक पर अखिलेश यादव की नजर है। इसका उदाहरण तभी देखने को मिल गया था, जब रामचरितमानस विवाद पर अखिलेश ने स्वामी प्रसाद मौर्या का साथ दिया। उन्होंने मौर्या के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया, साथ ही उन्हें प्रमोट करके पार्टी का महासचिव भी बना दिया।
जाति जनगणना की मांग और अब कांशीराम प्रतिमा का अनावरण
जाति जनगणना करवाए जाने को लेकर विभिन्न नेता मांग करते रहे हैं। बिहार सरकार इस समय जनगणना करवा रही है, जिसके बाद अखिलेश यादव ने भी इसकी मांग की। जानकार मानते हैं कि अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश ने जातीय जनगणना करवाने की मांग की है, ताकि वे अन्य जातियों को भी अपने साथ ला सकें। यूपी के बजट सत्र के दौरान भी वे यूपी सरकार पर जनगणना करवाए जाने की मांग करते रहे। अब कांशीराम प्रतिमा का अनावरण करके अखिलेश दलित और पिछड़ों के जरिए न सिर्फ बीजेपी की काट ढूंढने की कोशिश में हैं, बल्कि मायावती को भी झटका देने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, वे अपने मेगा प्लान में कितना सफल हो पाते हैं, यह तो लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। सोमवार को अखिलेश यादव ने बसपा प्रमुख मायावती पर निशाना साधते हुए कहा कि हम बहुजन समाज में सेंध लगाने नहीं, बहुजन समाज को बांधने वाले हैं।
सिर्फ एमवाई तक खुद को सीमित नहीं रख रहे अखिलेश
इससे पहले मायावती ने भी रविवार को पार्टी की विशेष बैठक में बिना नाम लिए अखिलेश यादव पर बसपा को कमजोर करने के लिए दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया था। कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद अखिलेश यादव ने कहा, ”आज हम सब दलितों, पिछड़ों, और अल्पसंख्यकों के हक और संविधान को बचाने का संकल्प लेते हैं।” मायावती पर निशाना और दलित, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाने से स्पष्ट है कि अखिलेश अब सिर्फ यादव और मुस्लिम वोटबैंक (एमवाई) तक ही खुद को सीमित नहीं करना चाहते हैं, बल्कि अब वे दलित और पिछड़ों को भी लेते हुए भविष्य में सियासत करना चाहते हैं।