कॉलेजियम की ओर से दो सिख वकीलों को हाई कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश पर केंद्र सरकार की मंजूरी न मिलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीखी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि आखिर इस तरह सरकार ट्रांसफर और नियुक्ति के मामलों में कुछ नामों को चुनती है और कुछ को छोड़ क्यों देती है।
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में वकीलों हरमीत सिंह ग्रेवाल और दीपेंदर सिंह नलवा को जज बनाए जाने की सिफारिश की गई थी। इसी का जिक्र करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की बेंच ने सवाल उठाया।
बेंच ने कहा, ‘जिन दो उम्मीदवारों के नाम मंजूर नहीं किए गए, वे दोनों सिख हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?’ ग्रेवाल और नलवा के नामों की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 17 अक्टूबर को की थी। उनके अलावा तीन और वकीलों के नाम मंजूर किए गए थे। उन तीन के नामों पर तो केंद्र सरकार की मुहर लग गई थी, लेकिन दो के नाम अब भी अटके हैं। अब शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की ‘पिक एंड चूज’ की नीति पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी को संबोधित करते हुए कहा, ‘अटॉर्नी, इससे अच्छा इंप्रेशन नहीं जाता। आप इस तरह से ट्रांसफर और पोस्टिंग को पिक एंड चूज नहीं कर सकते। आप इससे क्या संदेश देना चाहते हैं।’
यही नहीं कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जज का नाम लंबित है। एक का दिल्ली में बताया है और 4 लोगों का गुजरात हाई कोर्ट में पेंडिंग है। इस पर एजी ने कहा कि चुनावों का सीजन चल रहा है। इसकी वजह से थोड़ा वक्त लग रहा है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा कि आधे से भी कम नामों को अब तक मंजूरी मिली है। बेंच ने कहा कि हम पूरे मसले को समझते हैं। आप इस तरह से नामों को रोककर वरिष्ठता क्रम को प्रभावित करते हैं। अदालत ने कहा कि कॉलेजियम ने कुल 11 जजों के ट्रांसफर की सिफारिश की थी। इनमें से 5 को ही मंजूरी मिल पाई है, अब भी 6 नाम अटका रखे हैं।
अदालत ने कहा कि सरकार ने 8 नियुक्तियों पर भी कोई फैसला नहीं लिया है। यही नहीं 5 नामों पर तो उसने अपनी टिप्पणी भी नहीं दी है। अदालत ने कहा, ‘जिन लोगों के नाम मंजूर किए गए हैं, उसने सीनियर लोगों पर अब तक फैसला नहीं हुआ। यह ऐसा मामला है, जिस पर हम पहले भी कह चुके हैं। ऐसी स्थिति में कैंडिडेट्स के वरिष्ठता क्रम पर असर पड़ता है।’ अदालत ने अब इस मामले की सुनवाई 5 दिसंबर को करने का फैसला लिया है। बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन की ओर से जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर यह याचिका दायर की गई थी।