सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम को संवैधानिक मानते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा, जिसके बाद मुस्लिम धार्मिक नेताओं और विपक्षी पार्टियों ने इस निर्णय का स्वागत किया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद राशिद फरंगी महली ने इसे मदरसों के लिए एक बड़ी राहत बताया। उन्होंने कहा, “सरकार द्वारा बनाया गया कानून कैसे असंवैधानिक हो सकता है? हजारों लोग इन मदरसों से जुड़े हुए हैं, और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उन्हें बड़ी राहत दी है। अब हम स्वतंत्र रूप से अपने मदरसे चला सकते हैं।”
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भी इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि मदरसों ने देश को कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी दिए हैं। उन्होंने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हैं, जिसने इस अधिनियम को सही और न्यायपूर्ण ठहराया है। स्वतंत्रता संग्राम में मदरसों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इनसे कई आईएएस, आईपीएस, मंत्री और राज्यपाल निकले हैं। सभी मदरसों को शक की निगाह से देखना गलत है। यदि कोई मदरसा गलत राह पर है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन सभी मदरसों पर संदेह करना अनुचित है।”
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना कब राशिदी ने इस फैसले को एक बड़ा संदेश बताया। उन्होंने कहा, “यह बहुत बड़ा संदेश है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद इसका स्वागत करती है। यदि सरकार चाहती है कि मदरसों में आधुनिक शिक्षा में कुछ सुधार हो, तो हम बैठकर इस पर चर्चा कर सकते हैं। लेकिन यदि कुछ असंवैधानिक लागू किया गया तो इसका कानूनी मुकाबला होगा।”
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने कहा कि इस आदेश ने मदरसों के भविष्य को लेकर जारी अनिश्चितता को समाप्त कर दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर कहा, “सुप्रीम कोर्ट का यह महत्वपूर्ण निर्णय, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को संवैधानिक और वैध ठहराने वाला स्वागत योग्य है। इससे मदरसा शिक्षा के भविष्य को लेकर उपजे विवाद और हजारों मदरसों के भविष्य पर छाया अनिश्चितता समाप्त हो जाएगी। इसे उचित तरीके से लागू करना भी महत्वपूर्ण है।”
वहीं, समाजवादी पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि पार्टी देश की जनता को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना चाहती थी। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन ने कहा, “भाजपा जनता को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना चाहती थी। आजादी के बाद कानूनी तौर पर मदरसे स्थापित हुए थे, लेकिन भाजपा सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ है और नफरत की राजनीति करती है, जिससे मदरसों के खिलाफ लगातार बयानबाजी होती रही।”
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें इस अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, “हमने यूपी मदरसा कानून की वैधता को बरकरार रखा है, और कानून को केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब राज्य के पास विधायी क्षमता की कमी हो।”