छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में बारूदी सुरंग के विस्फोट में सुरक्षाबल के 10 जवान शहीद हो गए जबकि एक वाहन चालक भी शहीद हो गया। सुरक्षा अधिकारियों ने नक्सलियों के ऐसे हमलों को सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर रेखांकित किया है।
अधिकारियों की मानें तो नक्सल विरोधी ऑपरेशनों के दौरान सुरक्षाबलों के लिए माओवादियों द्वारा प्लांट किए गए आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) को समय रहते नाकाम करने अभी भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। इस रिपोर्ट में उन वजहों को जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर मुट्ठीभर नक्सली कैसे अभी भी सुरक्षा बलों के सामने बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।
सटीक तकनीक की कमी
सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि आईईडी का पता लगाने की अभी सटीक प्रौद्योगिकी की कमी एक चुनौती बनी हुई है। यही कारण है कि दक्षिणी छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों में नक्सलियों के छिपाए गए आईईडी को ट्रैक करना और उनमें विस्फोट कर निष्क्रिय करना सुरक्षा बलों के सामने अभी भी बड़ी चुनौती बना हुआ है।
नक्सलियों ने बदली रणनीति
नक्सलियों को काफी पीछे तक खदेड़ा जा चुका है। बीते वर्षों के दौरान नक्सल समस्या पर काबू पाने में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबियां हाथ लगी हैं। नक्सलियों के पास आधुनिक हथियार भी नहीं हैं, इसलिए वे आमने सामने की लड़ाई करने की बजाय औचक हमला कर रहे हैं। आईईडी विस्फोट उनके लिए कारगर साबित हो रहा है। ऐसे में आगे भी सुरक्षा बलों के सामने चुनौतियां बनी रहेंगी।
दुर्भाग्य से नक्सलियों के जाल में फंस गए हमारे जवान
सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा बल सड़क बनाकर इन इलाकों को अपने नियंत्रण में करते जा रहे हैं। अकेले सीआरपीएफ ने छत्तीसगढ़ में बीते तीन वर्षों के दौरान 15 अग्रिम अभियान आधार बनाए हैं। दुर्भाग्य से नक्सली दंतेवाड़ा में हमारे डीआरजी के वाहन को अपने ट्रैप में फंसाने में सफल रहे।
इस सीजन में खास सतर्कता की जरूरत
एक अन्य वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने समाचार एजेंसी ‘पीटीआई’ को बताया कि यह नक्सल प्रायोजित टीसीओसी अवधि चल रही है। इस दौरान सुरक्षा बल के जवानों को खास सतर्कता की जरूरत होती है। सुरक्षा एजेंसियों को आमतौर पर सतर्क करते हुए बताया जाता है कि टीसीओसी अवधि के दौरान ऑपरेशनों और प्रशासनिक कार्यों के दौरान सतर्क रहें।
क्या है टीसीओसी पीरियड
गौरतलब है कि टीसीओसी मार्च से जून के महीने में माओवादियों द्वारा चलाया जाने वाला एक सशस्त्र अभियान है। नक्सली इस अभियान को अपना काडर विस्तार करने और सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए चलाते हैं। सुरक्षा अधिकारी बताते हैं कि नक्सली इस सीजन को इस लिए चुनते हैं क्योंकि यह मौसम वन में पतझड़ का होता है। इस दौरान जंगल में दूर तक देखा जा सकता है नक्सली इसका फायदा उठाते हैं।
हिडमा ने रची साजिश
बस्तर में तैनात एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इन इलाकों में नक्सल गतिविधियों की जिम्मेदारी माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के पास है। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का नेतृत्व भगोड़ा नक्सली हिडमा कर रहा है। पुलिस की मानें तो बीते दो दशकों के दौरान हिडमा ने सैकड़ों हमलों को ऐसी ही साजिशों के जरिए अंजाम दिया है।
एक छोटी सी चूक भी देती है बड़ी टीस
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि नक्सली हमेशा सफल नहीं होते हैं क्योंकि सुरक्षा बलों ने भी उनकी चाल समझ ली है। लेकिन एकबार भी वे सफल होते हैं तो हमारे कई जवान या तो शहीद हो जाते हैं या घायल हो जाते हैं। मौजूदा वक्त में दूरदराज के इलाके होने, घने जंगल और कमजोर मोबाइल फोन संपर्क जैसी कई बाधाएं हैं जिनसे सुरक्षा बलों आज भी जूझ रहे हैं।
ऐसे देते हैं हमलों को अंजाम
एक अधिकारी ने कहा कि नक्सली सड़क पर गड्ढा खोदकर या पुल आदि के नीचे बारूदी सुरंग लगा देते हैं। जैसे ही सुरक्षाबलों के वाहन इनसे होकर गुजरते हैं, दूर बैठा व्यक्ति उसमें धमाका कर देता है। अक्सर आईईडी पर सैनिकों के पैर पड़ जाते हैं जिनसे धमाका हो जाता है। ऐसी घटनाओं में बीते दो वर्षों के दौरान 100 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं। सुरक्षा बलों के लिए एक मुश्किल चुनौती यह है कि बारूदी सुरंग का पता लगाने के लिए सटीक प्रौद्योगिकी नहीं है।