‘सेंगोल’ एक बार फिर से चर्चा में है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब मई में नए संसद भवन का उद्घाटन किया था तब इस मौके पर 21 अधीनम महंतों ने पवित्र राजदंड ‘सेंगोल’ सौंपा था।
अब ऐसा ही एक सेंगोल कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के सौंपा जाएगा। कर्नाटक सीएम को “सामाजिक न्याय का पुरोधा” बताते हुए प्रतीक के रूप में 10 किलो सोने की परत चढ़ा ‘सेंगोल’ भेंट किया जाएगा। मदुरै का एक प्रतिनिधिमंडल, मक्कल समुघा निधि परवई यह सेंगोल उन्हें सौंपेगा। इस संगठन को पीपुल्स सोशल जस्टिस काउंसिल के नाम से भी जाना जाता है।
सेंगोल अधिकार और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर लोकसभा कक्ष में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा था कि 1947 में सेंगोल, सी राजगोपालाचारी और अधीनाम के मार्गदर्शन में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था। कहा जाता है कि अगस्त 1947 में अंग्रेजों द्वारा सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया एक औपचारिक राजदंड ‘सेंगोल’ इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी में रखा गया था।
इस सेंगोल में लगी है पेरियार की मूर्ति
तमिल संस्कृति में, सेंगोल एक धार्मिकता का प्रतीक है। तमिलनाडु के प्रतिनिधिमंडल का मानना है कि सिद्धारमैया सेंगोल के पात्र प्राप्तकर्ता हैं। मक्कल समुघा निधि परवई (एमएसएनपी) के मनोहरन ने इसके महत्व के बारे में News18 से बात की और बताया कि वे सिद्धारमैया को यह “सामाजिक न्याय सेंगोल” क्यों दे रहे हैं। सिद्धारमैया को पेश किया जा रहा सेंगोल नई संसद में स्थापित सेंगोल से अलग है। संसद में लगे सेंगोल में नंदी और लक्ष्मी की मूर्तियां जड़ी हैं, वहीं सिद्धारमैया को दिए जाने वाले सेंगोल में पेरियार की मूर्ति उकेरी गई है। ईवी रामासामी, जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है, तमिलनाडु में प्रचलित ब्राह्मणवादी आधिपत्य और सामाजिक विषमताओं के खिलाफ दृढ़ता से खड़े थे और उन्हें ‘द्रविड़ आंदोलन के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
मनोहरन ने कहा, “प्रधानमंत्री द्वारा स्थापित सेंगोल में नंदी की एक छवि है, जो लोगों के एक विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। इसे हिंदुत्व के प्रतीक में बदल दिया गया। उस सेंगोल में हिंदू धर्म के प्रतीक नंदी और लक्ष्मी की मूर्तियां शामिल हैं। हमने अपने सेंगोल में पेरियार को सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में चुना है। इसलिए, इस सामाजिक न्याय सेंगोल को सिद्धारमैया को देना उचित है। सेंगोल किसी विशिष्ट जाति या धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, बल्कि न्याय और शक्ति का प्रतीक है।” एमएसएनपी ने सामाजिक न्याय के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण स्थापित करने के सिद्धारमैया के वादे और पाठ्यपुस्तकों से आरएसएस विचारक वीडी सावरकर जैसे सांप्रदायिक शख्सियतों के संदर्भों को हटाने के उनके फैसले की तारीफ की।
सेंगोल पर हो चुका है विवाद
चांदी से बने और सोने की परत चढ़े सेंगोल का उपयोग मूल रूप से तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपने के लिए किया जाता था। हालांकि कांग्रेस ने दावा किया कि इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘राजदंड’ (सेंगोल) को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित किये जाने का प्रतीक बताया हो। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी वाह-वाह करने वाले लोग इस रस्मी ‘राजदण्ड’ को तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।