यागराज में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या की जांच के लिए शासन की ओर से एसआईटी और गृह विभाग ने न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है। दोनों जांच दल अपने तरीके से मामले की तह में जाने की कोशिश करेंगे।
इस बीच मीडिया के कैमरों के सामने हुई हत्या ने पुलिस पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पुलिस कस्टडी में हत्या और किसी पुलिस वाले पर कोई कार्रवाई अभी तक नहीं होने से प्रयागराज से लेकर लखनऊ तक के अधिकारियों पर उंगली उठ रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि इतनी बड़ी वारदात के बाद किसे बचाने की कोशिश हो रही है। कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हर कोई जानना चाहता है।
सनसनीखेज वारदात पुलिस की कस्टडी में हुई है। पुलिस कस्टडी में किसी की मौत के बाद तत्काल पुलिस वालों पर कार्रवाई होती है। यहां कस्टडी में मौत नहीं हत्या कर दी गई। इसके बाद भी किसी पुलिस वाले पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है। इलाके के थानेदार की जिम्मेदारी भी तय नहीं हुई। अतीक की हत्या से पहले 24 फरवरी को धूमनगंज इलाके में उमेश पाल और दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई।
इसके बाद भी थानेदार या इलाकाई किसी पुलिस वाले को जिम्मेदार नहीं माना गया। अब पुलिस सुरक्षा में अतीक और अशरफ की हत्या कर दी गई लेकिन न तो किसी पुलिस वाले पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। शाहगंज थाने से चंद कदम दूरी पर कॉल्विन हॉस्पिटल में इतनी बड़ी वारदात हुई लेकिन शाहगंज पुलिस पर नदारद रही। किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
अतीक-अशरफ को एक ही हथकड़ी में क्यों लाया गया
अतीक और अशरफ को हत्या वाले दिन के अलावा भी कई बार जेल से कोर्ट और कोर्ट से जेल लाया ले जाया गया था। इस दौरान दोनों कभी भी एक साथ नहीं दिखे थे। अगर कभी दिखे भी तो हथकड़ी में नहीं दिखाई दिए थे। अतीक के सजायाफ्ता होने के कारण अगर हथकड़ी लगाने की जरूरत थी तो अशरफ को किस वजह से हथकड़ी गाई गई थी। फिर दोनों को एक ही हथकड़ी में इतना पास-पास क्यों बांधा गया था। क्या दोनों के भागने की कोई आशंका थी? अगर दोनों एक साथ इस तरह से हथकड़ी में न होते तो शायद हमलावरों को दोनों को मारने में सफलता नहीं मिलती। अतीक के गिरते से अशरफ भी गिर पड़ा और दोनों को भून दिया गया।
दो दर्जन गोलियां चलीं लेकिन टार्गेट को ही लगीं
अतीक और अशरफ पर करीब दो दर्जन गोलियां चलाई गईं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी खुलासा हुआ है कि अतीक को नौ गोली और अशरफ को पांच गोली लगी है। 22 राउंड गोली चलाई गई थी। पुलिस को करीब 20 खोखे मिले थे। इतनी ज्यादा और ताबड़तोड़ गोलीबारी के बाद भी वहां मौजूद करीब एक दर्जन से ज्यादा पुलिस वालों और मीडियाकर्मियों को गोली नहीं लगी। टारगेट के अलावा तीसरा कोई व्यक्ति गोली से न मरा न घायल हुआ। इस हमले में सिपाही और हमलावर लवलेश को गोली लगने की बात की जा रही थीं। हालांकि वीडियो में गोली से जख्मी होते दोनों नहीं दिखे। चर्चा रही कि गोली की बर्न इंजरी हो सकती है।
हमला होते ही पुलिस का दूर हटना, हमलावरों पर कोई गोली न चलाना
मीडियाकर्मी बनकर पहुंचे हमलावरों ने सबसे पहले अतीक के सिर में गोली मारी। अभी अशरफ कुछ समझ पाता कि उसे भी एक गोली मार दी गई। गोली चलते ही सुरक्षा में मौजूद पुलिस वाले दोनों से दूर हटते दिखाई दिए। इस बीच तीनों हमलावरों ने कुछ सेकेंड के अंदर से आराम से एक दर्जन से ज्यादा गोलियां अतीक और अशरफ के शरीर में उतार दीं। इस दौरान पुलिस की तरफ से हमलावरों पर कोई गोली नहीं चलाई गई। हमलावरों का निशाना भी इतना सटीक था कि गोलियां केवल दोनों टार्गेट को लगी। किसी पुलिस वाले को उस वक्त गोली लगते नहीं दिखाई दिया। बाद में हालांकि एक कैमरा मैन के चोटिल होने और एक पुलिस वाले के भी घायल होने की बात आई।
पहली बार मीडिया से बात करने का मौका देना
अतीक औऱ अशरप पिछले दो महीने में दो बार प्रयागराज पेशी के लिए लाए गए। दोनों ने पेशी पर आने से पहले अपनी सुरक्षा को लेकर कोर्ट में अपील भी की थी। कोर्ट ने पुलिस को सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया था। पहली बार पिछले महीने अतीक को साबरमती जेल से प्रयागराज की नैनी जेल लाया गया। नैनी जेल से कोर्ट लाया गया। कोर्ट से दोबारा नैनी जेल लाया गया। वहां से वापस साबरमती पहुंचाया गया। यही प्रक्रिया इस मीहने भी अपनाई गई। दोनों बार बरेली से अशरफ भी लाया गया।
हर बार मीडिया वालों को दोनों के पास फटकने तक नहीं दिया गया। मीडिया वाले दोनों से तभी कुछ पूछ सके जब पुलिस वैन कहीं रुकी। शनिवार को पहली बार ऐसा लगा कि पुलिस मेडिकल कराने के लिए नहीं बल्कि मीडिया से बात कराने के लिए अतीक और अशरफ को वहां लाई है। पत्रकारों से सवाल किया औऱ अतीक-अशरफ दोनों ने जवाब देना शुरू किया। इसी दौरान मीडियाकर्मी बने हमलावरों ने दोनों का काम तमाम कर दिया।
सुरक्षा घेरा दिखाई नहीं दिया
अतीक-अशरफ को मेडिकल के लिए काल्विन अस्पताल लेकर पहुंची पुलिस टीम में करीब 17 दारोगा और सिपाही शामिल थे। इस दौरान हमेशा दिखाई देने वाला सुरक्षा घेरा यहां नहीं दिखा। अभी तक हमेशा अतीक और अशरफ के आगे-आगे भी पुलिस वाले चलते थे। यह पुलिस वाले मीडिया या अन्य लोगों को दोनों के सामने नहीं आने देते थे। काल्विन अस्पताल में जब अतीक-अशरफ को लाया गया तो एक भी पुलिस वाला दोनों के आगे चलता नहीं दिखाई दिया। इससे मीडिया वाले सीधे अतीक-अशरफ तक पहुंच गए। मीडियाकर्मी बनकर पहुंचे हमलावरों ने दोनों की हत्या कर दी।
अस्पताल का कोई सीसीटीवी फुटेज जारी नहीं
अतीक और अशरफ पर हमला काल्विन अस्पताल परिसर में किया गया। वहां पर कई सीसीटीवी लगे हैं। उमेश पाल हत्याकांड के बाद सीसीटीवी फुटेज उसी दिन जारी हो गए और वायरल भी हो गए। लेकिन अतीक-अशरफ की हत्या के बाद किसी भी सीसीटीवी फुटेज को जारी नहीं किया गया है। इन फुटेज में ऐसा क्या है जिसे छिपाने की कोशिश हो रही है। फुटेज जारी होने से भी कई बातें साफ हो सकती हैं। अतीक और अशरफ की सुरक्षा में लगे पुलिस वालों की एक्टिविटी भी फुटेज में दिख सकती है। मीडिया के कैमरे में बहुत पास से चीजों को कैद किया था। लेकिन सीसीटीवी फुटेज में वाइड रेंज में चीजे कैद हुई होंगी। इसमें हमलावरों के आने के बाद क्या-क्या हुआ सबकुछ दिखाई दे रहा होगा।
हमलावरों के बारे में चुप्पी
हमले के बाद हमलावरों के बारे में पूरी तरह पुलिस ने चुप्पी साध ली। कोई पुलिस अफसर तीनों के बारे में आधिकारिक सूचना तक देने के लिए सामने नहीं आया। यहां तक कहा गया कि कोई भी बयान लखनऊ से ही जारी किया जाएगा। प्रयागराज पुलिस ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली। वारदात के तीन दिन बाद तक वारदात का मकसद साफ नहीं है। सूत्र केवल यही बताते रहे कि तीनों ने बड़ा अपराधी बनने के लिए यह वारदात की है। अगर इस बात को सही भी मान लिया जाए तो पेशेवर अपराधियों की तरह हमला करने की ट्रेनिंग उन्हें कहा से मिली। इसके बारे में अभी तक पुलिस को कुछ पता चला या नहीं। अगर पता चला तो उसे क्यों छिपाया जा रहा है।
विदेशी पिस्टल नौसिखियों के पास कहां से आई
हमलावरों के पास से हत्या में इस्तेमाल तुर्किए की बनी .9 एमएम गिरसान पिस्टल, .9 एमएम जिगाना पिस्टल और 7.62 बोर की देशी पिस्टल बरामद की है। जिगाना पिस्टल तुर्की मलेशिया मिलकर बनाते हैं और भारत में इस पर पाबंदी है। इसकी कीमत भी करीब दस लाख रुपए है। अगर तीनों गरीब घर के हैं तो इतनी महंगी पिस्टलें और गोलियां कहां से मिलीं। किसने इन्हें मुहैया कराई। साफ है कि इसके पीछे कोई बड़ा खेल है। विदेशी पिस्टल के साथ लाखों रुपये खर्च किए गए। तीनों को बकायदा विशेष ट्रेनिंग दी गई। इसके अलावा हमलावरों को एक वीडियो कैमरा और टीवी चैनल की फर्जी आईडी बनाकर दी गई थी।
पुलिस ने तीनों हमलावरों का रिमांड क्यों नहीं मांगा
अतीक और अशरफ की हत्या के आरोप में पकड़े गए अरुण, सनी और लवलेश ने पुलिस को बयान दिया कि डॉन बनने की चाहत में दोनों माफिया भाइयों की हत्या कर दी। किसी को यह बयान हजम नहीं हुआ। तीनों शूटर अलग अलग जिले के रहने वाले हैं। उनका अतीक अहमद से कोई टशन नहीं है। फिर इन्होंने क्यों हत्या की। तीनों ने वहां पर लोगों को गुमराह करने के लिए नारेबाजी की। इसके बाद भी पुलिस ने तीनों की पुलिस कस्टडी नहीं मांगी। आखिर पुलिस इतने बड़े हत्याकांड में पकड़ गए आरोपियों से पूछताछ भी नहीं करना चाहती थी। कहा जा रहा है कि अब एसआईटी ही उनसे पूछताछ करेगी।