अखिलेश-मायावती ने अतीक के बेटे असद के एनकाउंटर पर उठाए सवाल
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उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर सपा और बसपा ने उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा किया है।

अखिलेश ने कहा कि भाजपा मुठभेड़ से असली मुद्दों से भटकाना चाह रही है। उसे न्यायालय पर भरोसा नहीं है। मायावती ने तो एनकाउंटर की उच्चस्तरीय जांच की मांग कर डाली है। अखिलेश और मायावती के एनकाउंटर पर सवाल उठाने को अतीक परिवार को खुला समर्थन माना जा रहा है। इससे कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।

अतीक और उसका परिवार अलग अलग समय पर सपा बसपा का सदस्य रहा है। अपराधी होने के बाद भी अतीक का लगातार चुनाव जीतना और सांसद-विधायक बनने के पीछे मुस्लिमों का एकतरफा झुकाव भी है। ऐसे में सपा-बसपा दोनों मुस्लिम मतों को खुद से दूर नहीं करना चाहते हैं।

अतीक की पत्नी शाइस्ता बसपा की सदस्य

अतीक की पत्नी शाइस्ता ने तो कुछ समय पहले ही एमआईएमआईएम को छोड़कर बसपा ज्वाइन किया था। प्रयागराज से मेयर की सीट के लिए दावेदार भी थीं। मायावती की तरफ से उनका टिकट फाइनल भी माना जा रहा था। उमेश पाल हत्याकांड में शाइस्ता का नाम आने के बाद बसपा को बैकफुट पर आना पड़ा। अतीक के परिवार के किसी सदस्य को टिकट देने से साफ इनकार कर दिया गया। हालांकि अभी भी शाइस्ता बसपा की सदस्य हैं। बसपा ने उन्हें पार्टी से नहीं निकाला है।

सपा से विधायक और सांसद बना अतीक

समाजवादी पार्टी की बात करें तो 1996 में अतीक पहली बार साइकिल से विधायक बना था। हालांकि इससे पहले ही वह तीन बार अपने दम पर निर्दल लड़ते हुए ही विधायक बन चुका था। 1989, 1991 और 1993 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट से अतीक निर्दल प्रत्याशी के रूप में विधायक बनता रहा।

सपा से विधायक बनने के तीन साल बाद ही पार्टी में उसकी बनी नहीं। सपा का साथ छोड़कर अतीक 1999 में सोनलाल पटेल की पार्टी अपना दल में शामिल हो गया। 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो अतीक फिर से सपा में शामिल हो गया। सपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक को फूलपुर से टिकट दिया और वह पहली बार सांसद भी बन गया। अतीक के कारण सपा को प्रयागराज और आसपार की सीटों पर लगातार फायदा भी होता रहा।

अतीक का मुस्लिमों में खास प्रभाव

मुस्लिमों में अतीक के प्रभाव का ही असर था कि सपा-बसपा दोनों ने कभी खुलकर उसके खिलाफ बयानबाजी नहीं की। बसपा ने तो राजू पाल हत्याकांड के बाद अतीक की कमर तोड़ने का काम किया था। लेकिन बाद में उसकी पत्नी शाइस्ता को बसपा में शामिल कर लिया।

मुस्लिम मतों पर सपा-बसपा का जोर

सपा-बसपा का पूरा जोर इस बार भी मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में करने पर है। दोनों दलों के पास अपने परंपरागत वोट यादव और दलित तो हैं लेकिन बिना मुस्लिम मतों के यह वोट सीटें दिलाने में सफल नहीं हो सकते हैं। यूपी की कम से कम 50 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मत निर्णायक होते हैं। यह मत जिधर जाते हैं, विधायक और सांसद उसी पार्टी का बनता है।

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